Hindi Kahaniyan: नंदनवन में एक बटेर, बंदर और हाथी में गहरी दोस्ती थी। तीनों एक विशाल बरगद के पेड़ नीचे मिलते, जो बहुत पुराना था। चाहे कैसा भी मौसम हो, उस पेड़ की शीतल छाया उन्हें बहुत लुभाती।
बटेर, बंदर और हाथी जब से दोस्त बने थे, तब से वह पेड़ ही उनके मिलने का ठिकाना था। कई बार तो वे उसे भी अपना दोस्त ही कह देते। उनका अधिकतर समय पेड़ के नीचे गप्पें मारते या इधर-उधर की बातें करते ही बीतता था।
तीनों बहुत समझदार थे। उनमें से प्रत्येक की राय ही खास हुआ करती थी। इसीलिए उन्हें अपनी बहस बार-बार नए सिरे से शुरू करनी पड़ती थी, क्योंकि वे किसी नतीजे पर पहुंच ही नहीं पाते थे।

एक दिन उन्होंने अपनी बहस से खीझ कर कोई ऐसा उपाय निकालने की बात सोची ताकि वे किसी निर्णय पर पहुंच सकें। इस तरह वे इस नतीजे पर पहुंचे कि यदि यह पता चल जाए कि किसकी राय सबसे बेहतर है, तो नतीजे पर पहुंचना आसान हो जाएगा। लेकिन यह तय कैसे हो, अब यह समस्या थी।
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अंत में, उन्होंने तय किया कि सबसे अच्छी राय वही दे सकता है. जिसके पास सबसे ज्यादा अनुभव होगा। अनुभवी की राय मानने के बाद उनका समय नष्ट नहीं होगा। अगर उन्हें लगा कि उसकी राय में दम नहीं है तो वे किसी दूसरे की राय तलाश करेंगे।
अब सवाल यह था कि अनुभवी कौन होगा। सबसे अधिक अनुभवी वहाँ होगा, जो सबसे अधिक आयु का होगा? अब एक और समस्या सामने आ गई। उनमें से कोई भी नहीं जानता। था कि वे कब पैदा हुए थे इसलिए यह पता लगाना कठिन था कि उनमें से आयु में सबसे बड़ा कौन है।
जब किसी समस्या का समाधान सीधे-सीधे न निकल रहा हो, तो उसे युक्ति द्वारा ढूंढना चाहिए, ऐसा नीतिकारों का मानना है। इसके लिए सूक्ष्म बुद्धि की आवश्यकता होती है। वह बुद्धि बटेर के पास थी।
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एक दिन जब तीनों मित्र बरगद के पेड़ के पास बैठे थे, तो बटेर ने कुछ सोचने के बाद हाथी से पूछा, “क्या तुम्हें अपना बचपन याद है? तब यह पेड़ कितना बड़ा था?” बंदर और बटेर ने हाथी को देखा। उन्हें बटेर का यह सवाल बड़ा अटपटा लगा। उम्र का पेड़ से भला क्या लेना।
फिर भी हाथी ने याद करते हुए बताया, “मुझे याद आ रहा है, जब मैं छोटा था और मेरे पेट पर खुजली होती थी तो मैं इसकी ऊपरी शाखाओं से ही रगड़ कर खुजली मिटाया करता था। उस समय यह बहुत छोटा था।”

फिर बंदर ने याद करते हुए बताया, “मैं बहुत ही शरारती था। मुझे हर चीज का स्वाद चख कर देखने की आदत थी। तब यह बरगद का पेड़ छोटा पौधा था। मैं इस पर लगे छोटे पत्ते चबाया करता था ताकि उनके स्वाद का पता चल सके।”
बटेर ने कहा, “मैं पास वाले जंगल में रहता था। वहाँ एक विशाल बरगद का पेड़ था। मैं उसके छोटे-छोटे फल खाता था। फिर एक दिन मैं यहां आ गया। मेरे मल के साथ कुछ बीज यहां भी गिर गए। इस तरह यहां यह बरगद का पेड़ पैदा हो गया।”
“तब तो तुम निश्चित रूप से हम दोनों से बड़े हो,” बाकी दोनों दोस्त बोले, “आज से हम तुम्हारी सलाह मानेंगे और तुम्हारी सलाह की कद्र करेंगे। बस, तुम न्याय का साथ देना। यही करना जरूरी होता है। आज हम जान गए कि हम तीनों में से सबसे अधिक आयु किसकी है?”
“मैं वादा करता हूं कि मैं खुद को तुम्हारा सम्मान पाने के लायक बनाऊंगा,” बटेर ने आश्वासन दिया। बटेर सही मायनों में बोध को प्राप्त हो चुका था। उसके मित्रों ने उससे बड़ों और बुद्धिमानों का आदर-मान करना सीखा और यह भी कि अनुभव से ही कोई बड़ा बनता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि खुद से बड़े और बुद्धिमान लोगों का सम्मान करना चाहिए।