Hindi Kahaniyan: एक राजा जो अपनी बात के आगे किसी की नहीं सुनता था। वो हमेशा अपनी चलाता था, उसकी इस आदत से उनके मंत्री और सलाहकार भी परेशान रहते थे। बोधिसत्व ने एक बार नगर में जन्म लिया और राजा के सलाहकार बने। राजा बहुत ही बातूनी था। सलाहकार हमेशा यही सोचता कि वह राजा को विनम्रता के साथ कैसे समझाए कि उसे इतना नहीं बोलना चाहिए।
एक दिन जब राजा सैर पर निकले तो उन्होंने देखा कि मार्ग में एक कछुआ मरा पड़ा था। राजा वहीं रुक कर सोचने लगा कि आखिर इस कछुए की मौत कैसे हुई। सलाहकार को मौका मिल गया, जिसका वह काफी समय से इंतजार कर रहा था। सलाहकार ने राजा को निवेदन किया, ‘महाराज ! यह कछुआ हिमालय की एक झील में रहता था। इसने वहाँ दो हंसों से दोस्ती कर ली।
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जो कुछ समय के लिए वहां रहने आए थे। कछुआ बहुत बातें करता और उन दोनों को बहुत सारे किस्से सुनाता। कुछ समय बाद हंसों के वापस जाने का समय आ गया। वे चित्रकूट झील में लौट रहे थे। उन्होंने कछुए से कहा, ‘तुम हमारे दोस्त बन गए हो, तो तुम भी हमारे साथ क्यों नहीं चलते?’ कछुआ बोला, ‘मैं तुम्हारे साथ कैसे जा सकता हूं। मुझे तो उड़ना भी नहीं आता।’ ऐसा कहते समय उसके चेहरे पर उदासी थी।

“हंस बोले, ‘ऐसी बात है तो तुम कोई चिंता मत करो। हम तुम्हें अपने साथ ले चलेंगे। बस, तुम्हें यात्रा के दौरान अपना मुंह बंद रखना होगा।’ उनकी योजना थी कि दोनों हंस अपने मुंह में एक छड़ी पकड़ लेंगे और कछुआ उसे अपने मुंह में दबा कर लटक जाएगा। इस तरह वे उसे अपने साथ उड़ा कर चित्रकूट तक ले जाएंगे। कछुए ने वादा किया कि वह यात्रा के दौरान एक भी शब्द मुंह से नहीं निकालेगा और चित्रकूट आने तक बिल्कुल चुप रहेगा।”
हंस अगले दिन सुबह रवाना हुए। कछुआ उनके मुंह में दबी छड़ी को पकड़ कर लटक गया। कछुए ने सोचा, ‘अरे वाह! मैं तो उड़ रहा हूं। कितना मजा आ रहा है।’ “ज्यों ही वे शहर के पास पहुंचे, कुछ बच्चों ने हंसों व कछुए की इस तिकड़ी को देखा। वे इस अजीब से नजारे को देख जोर-जोर से चिल्लाने लगे, ‘देखो! देखो! दो हंस एक कछुए को कैसे उड़ा कर ले जा रहे हैं।”
कछुए को इससे बहुत खुशी और गर्व का अनुभव हो रहा था। बच्चों को हैरान देख कर वह खुद को रोक नहीं पा रहा था। वह भूल गया कि उसने मुंह न खोलने का वादा किया था। गुस्से में आ कर वह चिल्लाया, ‘मूखों! मेरे उड़ने से तुम्हें क्या परेशानी हो रही है?’ और इतना बोलते ही मूर्ख कछुआ धरती पर आ गिरा। देखते ही देखते उसकी जान निकल गई। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि उस बातूनी कछुए से कुछ देर के लिए भी चुप नहीं रहा गया।

“ श्रीमान् ! अभी आप उसी कछुए को यहां मरा हुआ देख रहे हैं, ” सलाहकार ने कहा। राजा ने कहा, “क्या तुम मुझे कोई सलाह देना चाहते हो? क्या तुम मेरे बारे में बात कर रहे हो?” “जी महाराज! भले ही कोई कछुआ हो या गरीब आदमी या फिर कोई राजा ही, सबको सोच-समझ कर और कम बोलना चाहिए,” सलाहकार ने अपनी बात कही।
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राजा मुस्कराने लगा क्योंकि उसे बात समझ आ गई थी। उसने कहा, “दोस्त! मुझे इतनी अच्छी बात समझाने के लिए मेहरबानी। मैं हमेशा इस बात को याद रखूंगा।”इसके बाद राजा केवल उतना ही बोलता, जितना आवश्यक होता।
निष्कर्ष (Conclusion)
दूसरों के गुणों को देखें और अपनी गलतियों से सीखें।