Hindi Kahaniyan: बनारस में बोध प्राप्त महापुरुष ने कुम्हार के रूप में जन्म लिया। वह अपने घर के पास बहने वाली नदी और झील से मिट्टी ला कर उससे मिट्टी के बर्तन और खिलौने बनाता था। इस तरह उसके परिवार का पेट भरता था। उसे अधिक धन की लालसा नहीं थी। वह केवल उतने ही बर्तन तैयार करता, जिन्हें बेच कर उसके परिवार का गुजारा आसानी से हो जाता। गांव में सभी एक ज्ञानी के रूप में उसका आदर करते थे।
वर्षा के दिनों में तो नदी और झील का जल एक साथ मिल कर बहने लगता परंतु जब सूखा पड़ता तो पानी का स्तर नीचे आ जाता। नदी और झील अलग हो जाते और कुछ समय बाद झील करीबन सूख जाती। उस झील में रहने वाले जीव बहुत सयाने थे। वे जानते थे कि कब सूखा पड़ेगा, कब बाढ़ आएगी या कब वर्षा होगी। जब उन्हें सूखा पड़ने का पता चलता तो वे तैर कर नदी में चले जाते। कुछ समय बाद झील का पानी भरपूर होने पर, फिर वे अपने घर वापस आ जाते।

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उस झील में ही एक जिद्दी बूढ़ा कछुआ भी रहता था। वह हमेशा कहीं जाने से इंकार कर देता। वह कहता, “मैं यहीं पैदा हुआ था। यह मेरे माता-पिता और पूर्वजों का घर है। मैं कहीं और जा कर क्यों रहूं? मैं तो यहीं रहूंगा। जिसे जहां जाना हो, बड़ी खुशी से चला जाए। और फिर वह ठंडी रेत में एक गड्ढा बनाता और खुद को तब तक के लिए उसमें छिपा लेता, जब तक झील का पानी फिर से नहीं बहने लगता था। इस तरह वह समय-समय पर अपनी जान बचाता रहता। असल में उसे पक्का यकीन हो गया था कि उसका ऐसा करना बिलकुल सही है।
एक बार भारी सूखा पड़ा। झील की सारी मछलियां, पक्षी, केकड़े और कछुए नदी की ओर चल दिए, लेकिन बूढ़े कछुए ने हमेशा की तरह खुद को रेत में दबा लिया और कहीं भी जाने से मना कर दिया। उसे लगा कि वह वहां पूरी तरह से सुरक्षित है। कुछ ही दिन बाद कुम्हार झील और नदी से अपने काम के लिए मिट्टी लेने आया। उसने अपने फावड़े से मिट्टी खोदी और अपने गधे की पीठ पर बँधे बोरे में डालने लगा। अचानक उसका फावड़ा मिट्टी में किसी सख्त टुकड़े से टकराया- दरअसल उसका फावड़ा कछुए के खोल से टकरा गया था। कछुआ दर्द से चिल्लाया, फावड़े की चोट काफी गहरी थी।

बूढ़ा कछुआ जोर-जोर से कराहने लगा, “हाय ! देखो मेरी क्या दशा हो गई। मैं न तो घर का रहा और न घाट का! उन्होंने मुझे नदी में चलने को कहा था, पर अपने घर के मोह के कारण मैंने वहां जाने से इनकार कर दिया। और अब देखो मेरा क्या हाल हो गया। मेरे पास न तो जीवन रहा और न ही घर! और अब मर रहा हूं।” ज्ञानी कुम्हार कछुए की मृत्यु होने तक उसके पास ही बैठा रहा और उसके मन को दिलासा देता रहा।
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फिर उसने गांववालों से कहा, “दोस्तो! हमें गरीब कछुए से सबक लेना चाहिए। वह अपने घर से अधिक मोह के कारण हाँ मारा गया है। अगर हम अपने जीवन से इतना मोह न पालें तो यह कितना सुंदर हो सकता है।’ लोगों ने उस ज्ञानी की शिक्षाओं को सुना-समझा और अन्य स्थानों पर भी उसका भरपूर प्रचार किया।
निष्कर्ष (Conclusion)
हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारे जीवन में घर और परिवार की क्या अहमियत है। आज की कहानी इसी सीख पर आधारित है।