रविवार व्रत की विधि, कथा और आरती | Ravivar Vrat Ki Vidhi, Katha Aur Aarti

Ravivar Vrat Ki Vidhi, Katha Aur Aartiरविवार व्रत की विधि, कथा और आरती

Ravivar Vrat Ki Vidhi, Katha Aur Aarti: सर्व मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु रविवार का व्रत श्रेष्ठ है। सूर्य का व्रत एक वर्ष या 30 रविवार अथवा 12 रविवार तक करना चाहिए। यह व्रत सर्व कार्यप्रद, कुष्ठादि रोग नाशक, पापनाशक तथा मुक्तिप्रदायक है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है।

रविवार व्रत पर क्या-क्या सेवन करें? (Ravivar Vrat Mein kya khayen)

रविवार के व्रत में नमक का भोजन और तेल का सेवन निषेध है। रविवार के व्रत में पारण या फलाहार करने वाले को उचित है कि सूर्य का प्रकाश रहते भोजन कर लें। यदि निराहार अवस्था में सूर्य अस्त हो जाय, तो दूसरे दिन सूर्योदय तक व्रत रखना उचित है। व्रत में फलाहार हो या पारण, भोजन एकबार से अधिक न करना चाहिए।

ये भी पढ़ें- सोलह सोमवार व्रत की पूजा विधि, कथा और आरती | Solah Somwar Vrat Ki Puja Vidhi, Katha aur Aarti

रविवार व्रत की विधि (Ravivar Vrat Ki Vidhi)

प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण करें तथा शांतचित्त होकर परमात्मा का स्मरण करें। भोजन एक समय से अधिक नहीं करना चाहिए। भोजन तथा फलाहार सूर्य के प्रकाश रहते ही कर लेना उचित है। यदि निराहार रहने पर सूर्य छिप जाए तो दूसरे दिन सूर्य उदय हो जाने पर अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करें। व्रत के अंत में व्रत कथा सुननी चाहिए। व्रत के दिन नमकीन तेलयुक्त भोजन कदापि ग्रहण ना करें।

Ravivar Vrat Ki Vidhi, Katha Aur Aarti
रविवार व्रत की विधि, कथा और आरती

रविवार का व्रत करते हुए, एक वर्ष बीत जाने पर व्रत करने वाला सूर्य को प्रणाम कर कहें कि मेरे ग्रह में चलिए, मैं आपका उद्यापन करूंगा/करूंगी। इतना कहकर माशाभर की भगवान सूर्य की सुवर्ण की मूर्ति बनवाकर पंचरत्न सहित बिना छिद्र का कलश स्थापित करके, उसके ऊपर चावल से पूर्ण तांबे का पात्र रखें और लाल वस्त्र से उसे आच्छादित करके पुष्प मालाओं से वेष्टित करें।

तत्पश्चात सूर्य के बारह नामों से सूर्य का पूजन करें, नारियल का अर्घ्य दें। इस व्रत के करने से मान-सम्मान बढ़ता है तथा शत्रुओं का क्षय होता है। आंख की पीड़ा के अतिरिक्त अन्य सब पीड़ाएं दूर होती हैं।

रविवार व्रत की कथा-1 (Ravivar Vrat Ki Katha)

एक बुढ़िया थी। उसका नियम था कि प्रति रविवार को ही स्नान आदि कर घर को गोबर से लीपकर फिर भोजन तैयार कर भगवान को भोग लगाकर वह स्वयं भोजन करती थी। ऐसा व्रत करने से उसका घर अनेक प्रकार के धन-धान्य से पूर्ण था।

श्रीहरि की कृपा से घर में किसी प्रकार का विघ्न या दुख नहीं था। सब प्रकार से घर में आनंद रहता था। इस प्रकार दिन बीत जाने पर उसकी एक पड़ोसन जिसकी गौ का गोबर वह बुढ़िया लाया करती थी। उसे सब प्रकार से सुखी देखकर वह उससे जला करती थी।

वह विचार करने लगी कि वह वृद्धा सर्वदा मेरी गौ का गोबर ले जाती है और उससे अपने घर को लीप-पोतकर भगवान की पूजा करती है और भोग लगाती हैं। अतः बुढ़िया को अब अपनी गौ का गोबर नहीं लेने देना चाहिए।

यह सोचकर वह अपनी गौ को घर के भीतर बांधने लग गई। बुढ़िया गोबर ना मिलने से रविवार के दिन अपने घर को ना लीप सकी। इसलिए उसने न तो भोजन बनाया न भगवान को भोग लगाया तथा स्वयं भी उसने भोजन नहीं किया।

इस प्रकार उसने निराहार व्रत किया। रात्रि हो गई और वह भूखी ही सो गई। रात्रि में भगवान ने उसे स्वप्न दिया और भोजन ना बनाने तथा भोग न लगाने का कारण पूछा।

Ravivar Vrat Ki Vidhi, Katha Aur Aarti
रविवार व्रत की विधि, कथा और आरती

वृद्धा ने गोबर न मिलने का कारण सुनाया। तब भगवान ने कहा कि माता हम तुमको ऐसी गौ देते हैं, जिससे सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। क्योंकि तुम हमेशा रविवार को गौ के गोबर से लीपकर भोजन बनाकर मेरा भोग लगाकर खुद भोजन करती हो। इससे मैं प्रसन्न होकर तुमको वरदान देता हूं। मैं निर्धन को धन और बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर उनके दुखों को दूर करता हूं तथा अंत समय में मोक्ष प्रदान करता हूं।

स्वप्न में ऐसा वरदान देकर भगवान तो अंतर्धान हो गए और वृद्धा की आंख खुली तो वह देखती है कि आंगन में एक अति सुंदर गौ और बछड़ा बंधे हुए हैं। वह गाय और बछड़े को देखकर अतीव प्रसन्न हुई और उसने उन्हें घर के बाहर बांध दिया और वहीं खाने को चारा डाल दिया।

जब उसकी पड़ोसन बुढ़िया ने घर के बाहर एक अति सुंदर गौ और बछड़े को देखा तो द्वेष के कारण उसका हृदय जल उठा और उसने देखा कि गाय ने सोने का गोबर किया है तो वह उस गाय का गोबर ले गई और अपनी गाय का गोबर उसकी जगह पर रख गई। वह नित्यप्रति ऐसा ही करती रही।

सीधी-सादी बुढ़िया को इसकी भनक भी नहीं पड़ने दी। तब सर्वव्यापी ईश्वर ने सोचा कि चालाक पड़ोसन के कर्म से बुढ़िया उगी जा रही है तो ईश्वर ने संध्या के समय अपनी भाषा से बड़े जोर की आंधी चला दी। बुढ़िया ने आंधी के भय से अपनी गौ और बछड़े को भीतर बांध लिया।

प्रातः काल जब वृद्धा ने देखा कि गौ ने सोने का गोबर दिया है तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही और वह प्रतिदिन गऊ को घर के भीतर बांधने लगी। उधर पड़ोसन ने देखा कि बुढ़िया गऊ को घर के भीतर बांधने लगी है। उसका सोने का गोबर उठाने का दांव नहीं चलता तो वह ईर्ष्या और डाह से जल उठी और कुछ उपाय न देख पड़ोसन ने उस देश के राजा की सभा में जाकर कहा- महाराज मेरे पड़ोस की एक वृद्धा के पास एक ऐसी गऊ है जो आप जैसे राजाओं के ही योग्य है, वह नित्य सोने का गोबर देती है। आप उस सोने से प्रजा का पालन करिए।

वह वृद्धा इतने सोने का क्या करेगी ? राजा ने यह बात सुन अपने दूतों को वृद्धा के घर से गऊ लाने की आज्ञा दी। वृद्धा प्रातः ईश्वर का भोग लगा भोजन ग्रहण करने ही जा रही थी कि राजा के कर्मचारी गऊ खोलकर ले गए।

वृद्धा काफी रोई-चिल्लाई, किंतु राजा के कर्मचारियों के समक्ष कोई क्या कहता ? उस दिन वृद्धा गऊ के वियोग में भोजन न खा सकी और रात भर रो-रो कर ईश्वर से गऊ को पुनः पाने के लिए प्रार्थना करती रही।

उधर राजा गऊ को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ, लेकिन सुबह जैसे ही वह ‘उठा, सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा। राजा यह देख घबरा गया। भगवान ने रात्रि में राजा को स्वप्न में कहा कि हे राजा! गाय वृद्धा को लौटाने में ही तेरा भला है। उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैंने उसे गाय दी थी।

प्रातः होते ही राजा ने वृद्धा को बुलाकर बहुत से धन के साथ सम्मान सहित गौ लौटा दी तथा उसकी पड़ोसिन को बुलाकर उचित दण्ड दिया। इतना करने के बाद राजा के महल से गंदगी दूर हुई। उसी दिन से राजा ने नगरवासियों को आदेश दिया कि राज्य की तथा अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रविवार का व्रत रखा करो।

व्रत करने से नगर के लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। कोई भी घातक रोग, प्रकृति का प्रकोप उस नगर पर नहीं होता था। सारी प्रजा सुख से रहने लगी। जो मनुष्य रविवार के व्रत को करता है, वह निर्घ्याधि निपुण, स्त्री-पुत्र एवं पौत्र से युक्त होता है। पृथ्वी पर देवताओं के दुर्लभ भोगों को भोगकर अंत में मोक्ष प्राप्त करके सूर्यलोक का गमन करता है।

रविवार व्रत की कथा-2 (Ravivar Vrat Ki Katha)

कोई सास-बहू थी। बहू का पति स्वयं सूर्य का अवतार था। वह सदैव अन्तर्द्धान रहा करता था। समय पर घर आता और फिर चला जाता था। वह जब कभी आता-जाता, तब तब एक हीरा अपनी मां को और एक अपनी स्त्री को दे जाया करता था। उसी से उनका खर्च चलता था। उस पुरुष का नाम भी सूर्यबली था।

एक दिन सूर्यबली की माता ने उससे कहा कि तुम जो कुछ देते हो, उससे हमारे खाने-पीने को भी पूरा नहीं पड़ता। यह सुनकर लड़के ने कहा कि मैं जो हीरा तुमको देता हूं, उसके मूल्य से तुम्हारा उम्रभर खाना-पीना चल सकता है। परन्तु तुम फिर भी भूखी रहती हो। इससे स्पष्ट होता है कि तुम्हारी नीयत दुरुस्त नहीं है। तुमको अपने भरण-पोषण के सिवाय अपने कर्तव्यों का कुछ ध्यान ही नहीं है। इसी कारण तुम्हारा अघाव नहीं होता और इसी से मैं घर में नहीं ठहरता हूं। तब सास-बहू दोनों ने कहा कि अब से हमलोग नियमपूर्वक कार्तिक-स्नान किया करेंगी।

उन्होंने बारह वर्ष तक विधिपूर्वक कार्तिक-स्नान किया। बारहवें वर्ष बहू ने अपने पति सूर्यबली से कहा कि अब हमको कार्तिक का उद्यापन (शान्ति) करना है। आप इसका प्रबन्ध कर दीजिये।

तब सूर्यबली की इच्छा करते ही उनका घर धन-धान्यादि सब सामग्री से परिपूर्ण हो गया। प्रातःकाल कार्तिक का पूजन करके बहू ने शाम को सूर्य भगवान का पूजन किया। तब सूर्य भगवान ने दर्शन देकर कहा कि जो वर मांगना हो, मांग लो। स्त्री ने कहा कि मेरा पति मुझसे दूर-दूर रहता है, सो मुझे उसके संयोग का वरदान दिया जाय। इस पर सूर्य तथास्तु कहकर अन्तर्द्धान हो गये।

रात्रि होते ही सूर्यबली ने मां से कहा कि आज मैं घर में ही सोऊंगा। यह सुनकर बहू को प्रसन्नता हुई। उसने अच्छी तरह से सेज संवारी। उसका पति आकर उस पर लेट रहा। सूर्य देवता मनुष्य के रूप में शयन करने लगे तो सारे संसार में अन्धकार हो गया। मनुष्यों की बात ही क्या है; सुर, मुनि, नाग, गन्धर्वादि व्याकुल होकर बुढ़िया के घर दौड़े आये।

सब ने बुढ़िया की शुश्रूषा करके कहा कि अपने पुत्र को जगाओ। उसने शयनागर के पास जाकर पुत्र को बुलाया। तब वह उठकर बाहर चला आया। उसने देवताओं से कहा कि जब तक सास-बहू कार्तिक नहाएं, तब तक इनके घर गंगा बहें और ऋषि-सिद्धियां इनके घर वास करें।

तब देवताओं ने सर्वसम्मति से सूर्य भगवान का आदेश स्वीकार किया। तभी से स्त्री-समाज में कार्तिक-स्नान का विशेष माहात्म्य माना गया है। कार्तिक स्नान करने वाली स्त्री के घर सम्पूर्ण देवताओं और ऋद्धि-सिद्धियों का वास रहता है तथा कार्तिक स्नान से सम्पूर्ण पापों का नाश होता है और अन्त में स्वर्ग का वास होता है।

कार्तिक स्नान करते हुए भी यदि रविवार का व्रत विधिवत् न किया जाय तो कार्तिक-स्नान का फल नहीं प्राप्त होता। कार्तिक के अतिरिक्त जब दूसरे महीनों के सम्बन्ध में, जैसे माघ, वैशाख आदि के स्नान और व्रत में, यह कथा कही जाती है, तब कार्तिक के स्थान में अपेक्षित महीने का नाम योजित कर दिया जाता है।

Ravivar Vrat Ki Vidhi, Katha Aur Aarti
रविवार व्रत की विधि, कथा और आरती

रविवार की आरती (Ravivar Vrat Ki Aarti)

कह लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकी जोति विराजे ॥ टेक ॥

सात समुद्र जाके चरणनि बसे, कहा भयो जल कुंभ भरे राम।

कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मंदिर दीप धरे हो राम।

भार अठारह रोमावलि जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।

छप्पन भोग जाके प्रतिदिन लागें, कहा भयो नैवेद्य धरे हो राम।

अमित कोटि जाके बाजा बाजें, कहा भयो झनकार करे हो राम।

चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रह्म वेद पढ़े हो राम।

शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक, नारद मुनि जो ध्यान धरे हो राम।

हिम मंदार जाको पवन झकोरें, कहा भयो शिर चंवर दुरे हो राम।

लख चौरासी बंद छुड़ाए केवल हरियश नामदेव गाए हो राम॥