मंगलवार के व्रत का महत्व, विधि, कथा और आरती | Mangalvar Vrat Ki Vidhi, Katha aur Aarti

Mangalvar Vrat Ki Vidhi, Katha aur Aartiमंगलवार के व्रत का महत्व, विधि, कथा और आरती

Mangalvar Vrat Ki Vidhi, Katha aur Aarti: प्रभु श्रीराम के चरण कमलों के जो भ्रमर हैं। जिन्होंने लंकापुरी को दग्ध करके देवगण को आनंद प्रदान किया है, जो संपूर्ण अर्थ सिद्धियों के आभार और लोक विश्रुत प्रभावशाली हैं। उन पराक्रमी श्री हनुमान का व्रत मंगलवार के दिन किया जाता है।

Mangalvar Vrat Ki Vidhi, Katha aur Aarti

मंगलवार व्रत की विधि (Mangalvar Vrat Ki Vidhi)

सर्व सुख, रक्त विकार, राज्य-सम्मान तथा पुत्र की प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत  (Mangalvar Vrat) अति उत्तम है। इस व्रत में गेहूं और गुड़ का ही भोजन करना चाहिए। भोजन दिन-रात में एक बार ही ग्रहण करना ठीक है।

Mangalvar Vrat Ki Vidhi, Katha aur Aarti
मंगलवार के व्रत का महत्व, विधि, कथा और आरती

व्रत के पूजन के समय लाल पुष्पों को चढ़ाना चाहिए और लाल वस्त्र धारण करने चाहिए। 21 सप्ताह तक यह व्रत करने से मंगल दोष का नाश होता है। अंत में हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए तथा मंगलवार की कथा सुननी चाहिए।

मंगलवार व्रत की कथा-1 (Mangalvar Vrat Ki Katha)

एक वृद्धा थी। वह प्रत्येक मंगल को व्रत किया करती थी। उसके पुत्र का नाम मंगलिया था। मंगल के दिन बुढ़िया न तो लीपती थी और न मिट्टी खनती थी। एक दिन मंगल देवता साधु का वेश धारण कर उसके घर आये और आवाज लगाई।

बुढ़िया ने बाहर आकर जवाब दिया कि हमारा एक बालक है। वह गांव में खेलने चला गया है। मैं गृहस्थी का काम कर रही हूं। क्या आज्ञा है कहिये? तब साधु बोला कि मुझको बड़ी भूख लगी है। भोजन बनाना है। इसके लिए तू थोड़ी-सी जमीन लीप दे, तो तुझको बड़ा पुण्य होगा।

यह सुनकर बुढ़िया ने जवाब दिया कि आज तो मैं मंगल व्रती हूं। इस कारण लीप तो नहीं सकती, कहिये तो पानी छिड़क कर चौका लगा दूं। उसी जगह आप रसोई बना लें।

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साधु ने कहा कि मैं तो गोबर से लिपे हुए चौके में रसोई बनाता हूं। बुढ़िया ने कहा कि जमीन लीपने के सिवाय और जिस तहर से कहिये मैं आपकी सेवा करने को तैयार हूं। तब बाबा ने फिर कहा कि खूब सोच-समझ कर कहो जो कुछ भी मैं कहूं, तुझे करना होगा।

इस पर बुढ़िया ने तीन बार यह वचन दिया कि जो कुछ भी आप कहेंगे, मैं करूंगी। तब साधु बोला कि अपने लड़के को बुलाकर औंधा लिटा दे। उसी की पीठ पर मैं भोजन बनाऊंगा। बाबा की बात सुनकर बुढ़िया चुप रह गई। बाबा ने फिर कहा कि माई! बुला ला लड़के को, अब सोच-विचार क्या करती है?

बुढ़िया ‘मंगलिया-मंगलिया’ कहकर पुकारने लगी। थोड़ी देर में लड़का आ गया। बुढ़िया ने कहा कि जा तुझे बाबा बुलाता है। लड़के ने बाबा के पास जाकर पूछा- “क्या है महाराज?”

बाबा ने कहा कि जा अपनी मां को बुला ला। बुढ़िया आई तो बाबा ने उससे कहा कि तू ही लड़के को लिटा दे और अंगीठी लगा दे। बुढ़िया ने मंगल देवता का स्मरण करते हुए लड़के को औंधा लिटा दिया और उसकी पीठ पर अंगीठी लगा दी। फिर उसने बाबा से कहा कि अब आपको जो कुछ करना हो कीजिये, मैं जाकर अपना काम करूंगी।

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मंगलावर व्रत की कथा

साधु ने लड़के की पीठ पर लगी हुई अंगीठी में आग जलाई और उसी पर भोजन बनाया। जब भोजन बन चुका, तब उसने बुढ़िया को बुलाकर कहा कि अब अपने लड़के को बुला ला; वह भी भोग प्रसाद ले जाय।

बुढ़िया बोली कि यह कैसे आश्चर्य की बात है कि उसी की पीठ पर आपने आग जलाई, और उसी को अब प्रसाद के लिए बुला रहे हैं। क्या यह सम्भव है कि वह अब भी जीवित हो? कृपा करके अब तो आप मुझे उसका स्मरण भी न कराइये। आप भोग लगाइये और जहां जाना हो जाइये।

साधु के बहुत समझाने और आग्रह करने पर बुढ़िया ने ज्योंही आवाज लगाई त्योंही लड़का एक ओर से दौड़ता हुआ आ गया। साधु ने लड़के को प्रसाद दिया और कहा कि माई! तेरा व्रत सफल है। तेरे हृदय में दया है और अपने इष्ट के प्रति अटल विश्वास तथा निष्ठा है। इस कारण तेरा कभी कोई अनिष्ट नहीं हो सकता।

मंगलवार व्रत की कथा-2 (Mangalvar Vrat Ki Katha)

कुण्डनपुर नामक नगर में नंदा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुनंदा था। वह बहुत पतिव्रता स्त्री थी। उनके यहां किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, फिर भी वे दोनों दुखी रहते थे। इसका एकमात्र कारण यह था कि उनके यहां कोई संतान नहीं थी।

एक दिन वह ब्राह्मण हनुमान जी की पूजा हेतु वन में चला गया। वह पूजा के साथ महावीर जी से एक पुत्र की कामना प्रकट किया करता था। घर पर उसकी पत्नी मंगलवार का व्रत पुत्र की प्राप्ति के लिए किया करती थी।

मंगल के दिन व्रत के अंत में भोजन बनाकर हनुमान जी को भोग लगाने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करती थी। एक बार कोई अन्य व्रत आ गया, जिसके कारण ब्राह्मणी भोजन न बना सकी।

तब हनुमान जी का भोग भी नहीं लगाया। वह अपने मन में ऐसा प्रण करके सो गई कि अब अगले मंगलवार को हनुमान जी को भोग लगाकर अन्न ग्रहण करूंगी।

वह भूखी-प्यासी छः दिन पड़ी रही। मंगलवार के दिन तो उसे मूर्छा ही आ गई। तब हनुमान जी उसकी लगन और निष्ठा को देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसे दर्शन दिए और कहा कि “मैं तुझसे अति प्रसन्न हूं। मैं तुझको एक ऐसा सुंदर बालक प्रदान करता हूं, जो तेरी बहुत सेवा किया करेगा।”

हनुमान जी मंगलवार को बाल रूप में उसको दर्शन देकर अंतर्धान हो गए। सुंदर बालक पाकर ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुई। ब्राह्मणी ने बालक का नाम मंगल रखा।

कुछ समय पश्चात ब्राह्मण वन से लौटकर आया। एक प्रसन्नचित्त सुंदर बालक को घर में खेलता देखकर वह ब्राह्मण पत्नी से बोला- यह बालक कौन है? पत्नी ने कहा- मंगलवार के व्रत से प्रसन्न हो हनुमान जी ने दर्शन दे मुझे यह बालक दिया है। ब्राह्मण को लगा कि पत्नी उसके साथ छल कर रही है। उसने सोचा कि यह कुलटा व्यभिचारिणी अपनी कलुषता छुपाने के लिए बात बना रही है।

एक दिन उसका पति कुएं पर पानी भरने चला, तो पत्नी ने कहा कि मंगल को भी साथ ले जाओ। वह मंगल को साथ ले चला और उसको कुएं में डालकर वापिस पानी भरकर घर आया तो पत्नी ने पूछा कि मंगल कहां है?

तभी मंगल मुस्कुराता हुआ घर आ गया। उसको देख ब्राह्मण आश्चर्यचकित हुआ, रात्रि में उसके पति से हनुमान जी ने स्वप्न में कहा -यह बालक मैंने दिया है। तुम पत्नी को कुलटा क्यों कहते हो? ब्राह्मण यह जानकर बहुत खुश हुआ। फिर पति-पत्नी मंगल का व्रत रख अपना जीवन आनंदपूर्वक व्यतीत करने लगे।

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मंगलवार के व्रत का महत्व, विधि, कथा और आरती

मंगलवार व्रत के फायदे (Mangalvar Vrat Ke Fayde)

जो मनुष्य मंगलवार व्रतकथा को पढ़ता या सुनता है और नियम से व्रत रखता है, उसके हनुमान जी की कृपा से सब कष्ट दूर हो जाते हैं। घर में नित्य प्रति हनुमान जी की पूजा करने से भूत-प्रेत नहीं सताते। उनके नाम में अमोध शक्ति है। नित्य हनुमान जी के दर्शन करने से परम कल्याण होता है।

मंगलवार की आरती (Mangalvar Vrat Ki Aarti/Hanuman Ji Ki Aarti)

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके॥

अंजनी पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई॥

दे बीरा रघुनाथ पठाये। लंका जारि सिया सुधि लाये॥

लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥

लंका जारि असुर संहारे। सियाराम के काज संवारे॥

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। लाये संजीवन प्राण उबारे॥

पैठि पाताल तोरि जम कारे। अहिरावण की भुजा उखारे॥

बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संत जन तारे॥

सुर नर मुनि आरती उतारें। जै जै जै हनुमान उचारें॥

कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई॥

जो हनुमान जी की आरति गावै। बसि बैकुंठ परमपद पावै॥