प्रदोष व्रत कथा, पूजा विधि और आरती | Pradosh Vrat Katha, Puja Vidhi aur Aarti

Pradosh Vrat Katha, Puja Vidhi aur Aartiप्रदोष व्रत कथा, पूजा विधि और आरती

Pradosh Vrat Katha, Puja Vidhi aur Aarti: प्रदोष का अर्थ है रात्रि का आरम्भ। इसी समय इस व्रत के पूजन का विधान है। अतः इसे प्रदोष का व्रत कहते हैं। यह व्रत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है। इसका उद्देश्य संतान की कामना है। इसे स्त्री और पुरुष दोनों करते हैं।

प्रदोष व्रत की विधि (Pradosh Vrat Ki Vidhi)

इस व्रत के मुख्य देवता आशुतोष भगवान शंकर माने जाते हैं, अत: सायंकाल को व्रत करने वाले को भगवान शंकर की पूजा करके अल्प आहार करना चाहिए।

सन्तान की कामना इस व्रत का मुख्य उद्देश्य है। इसके उपास्य देवता हैं महादेव शंकर प्रदोष काल में उन्हीं का विधिवत् पूजन होता है। इस व्रत में सायंकाल शंकर का पूजन करके भोजन करना चाहिए।

व्रती को एक भुक्त ही रहना चाहिए। दोनों पक्षों की अपेक्षा कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत यदि शनिवार को पड़ता है तो यह ‘शनि प्रदोष’ विशेष फलदायक होता है।

Pradosh Vrat Katha, Puja Vidhi aur Aarti
प्रदोष व्रत कथा, पूजा विधि और आरती

सोमवार शंकरजी का दिन है। इसलिए यदि प्रदोष सोमवार को पड़ता है तो उसे ‘सोमवार प्रदोष’ कहते हैं। श्रावण मास का प्रत्येक सोमवार प्रदोष के लिए अत्यन्त उपादेय माना गया है। प्रदोष व्रत की कथा इस प्रकार है-

प्रदोष व्रत की कथा (Pradosh Vrat Katha)

प्राचीन काल की बात है। एक ब्राह्मणी अपने पति के स्वर्गवासी हो जाने पर विधवा होकर इधर-उधर भिक्षा मांगकर अपना तथा अपने पुत्र का जीवन-निर्वाह करने लगी। वह अपने पुत्र को लेकर प्रातः निकलती और रात्रि को घर लौटती।

ये भी पढ़ें- सोलह सोमवार व्रत की पूजा विधि, कथा और आरती | Solah Somwar Vrat Ki Puja Vidhi, Katha aur Aarti

एक दिन उसे विदर्भ देश का राजकुमार मिला जो अपने पिता की मृत्यु के कारण इधर-उधर मारा-मारा फिर रहा था। ब्राह्मणी को राजकुमार पर दया आ गई। वह उसे अपने साथ घर ले आई और अपने पालन-पोषण करने लगी। पुत्र समान ही उसका

एक दिन वह दोनों बालकों को लेकर शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गई। ऋषि से भगवान शंकर के पूजन की विधि जानकर वह लौट आई और प्रदोष व्रत करने लगी।

एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे। उन्होंने वहां गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते देखा। ब्राह्मण कुमार तो घर लौट आया, किंतु राजकुमार अंशुमती नामक गंधर्व कन्या से बात करने लगा। वह देर से घर लौटा।

Pradosh Vrat Katha
प्रदोष व्रत की कथा

दूसरे दिन भी उसी स्थान पर राजकुमार पहुंच गया। अंशुमती अपने माता-पिता के साथ बैठी हुई थी। माता-पिता ने राजकुमार से कहा कि भगवान शंकर की आज्ञा से हम अंशुमती का विवाह तुम्हारे साथ करेंगे। राजकुमार शादी के लिए तैयार हो गया।

दोनों का विवाह हो गया। उसने गंधर्व राजा विद्रविक की विशाल सेना लेकर विदर्भ पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात राजकुमार ने ब्राह्मणी एवं उसके पुत्र को अपने महल में सम्मान के साथ रख लिया, जिससे उनके सभी दुख दूर हो गए। यह प्रदोष व्रत का का महत्व बढ़ गया। ही फल था। उस समय से ही प्रदोष व्रत का महत्व बढ़ गया।

प्रदोष व्रत की आरती (Pradosh Vrat Aarti)

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिवओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिवअर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा

दो भुज चारचतुर्भुज दस भुजअति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जनमोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भालेशशिधारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा

श्वेताम्बरपीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा

कर के मध्यकमंडलु चक्र त्रिशूलधर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानतअविवेका।
प्रणवाक्षरमध्ये ये तीनोंएका॥
ॐ जय शिव ओंकारा

काशी में विश्वनाथविराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि भोगलगावत महिमा अतिभारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा

त्रिगुण शिवजीकी आरती जोकोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछितफल पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा