Hindi Kahaniyan: मथुरा के महाराज ब्रह्मदत्त को अपने राज्य में बेशकीमती चीजों के संग्रह करने का बहुत शौक था। उनके पास एक शानदार नस्ल का घोड़ा था, जिसे सिंध से लाया गया था। घोड़े का विशेष ख्याल रखा जाता था। उसके अस्तबल को बहुत साफ सुथरा रखा जाता था। वहां किसी भी प्रकार की गंदगी महाराज को कतई बर्दाश्त नहीं ती।
इस खास घोड़े के लिए एक आलीशान काठी मंगवाई गई, जिसमें हीरे और सोने का इस्तेमाल किया गया था। महाराज घोड़े से बहुत प्यार करते थे। उन्हें उस पर पूरा भरोसा था। वे उसे रुस्तम कह कर बुलाते थे। रुस्तम अपने नाम के अनुसार बहुत ही समझदार और बुद्धिमान घोड़ा था।
एक दिन महाराज को पता चला कि उनके राज्य को सात पड़ोसी राजाओं ने घेर लिया है। उनमें से प्रत्येक के पास चार सेनाएं थीं। इनमें पैदल सेना, घुड़सवार सेना, रथ और हाथियों पर सवार सेना शामिल थीं।
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मंत्रियों ने सलाह दी कि महाराज को राज्य की रक्षा के लिए तत्काल युद्ध आरंभ कर देना चाहिए। मंत्री चाहते थे कि महाराज अपने स्थान पर किसी दूसरे को युद्ध में भेजें, ताकि वे सुरक्षित रहते हुए सबका मार्गदर्शन कर सकें।

महाराज ने अपने सबसे अच्छे योद्धा को बुलवाया। उसने अस्तबल से अपने लिए सबसे चतुर, सधे हुए और निडर घोड़े की मांग की। महाराज ने उसे अपना प्रिय अश्व रुस्तम दे दिया।
रुस्तम बहुत ही निराला घोड़ा था। वह युद्धकला में कुशल था। उसने घुड़सवार सेनापति से कहा, ” श्रीमान! मैं आपको इस लड़ाई में जीतने का एक नायाब तरीका बताता हूं।
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रुस्तम ने कहा, “हमारा युद्ध दूसरों से अलग होना चाहिए। मैं आपको सेना के राजा के पास ले जाऊंगा। आप उन्हें बिना मारे ही बंदी बना लीजिएगा। मेरा मानना है कि दूसरों को मार कर ही युद्ध को जीता नहीं जाता।” सेनापति रुस्तम की बात सुनकर बहुत प्रभावित हुआ। उसने हामी भरी और कहा कि वह रुस्तम के कहे अनुसार ही चलेगा।
अगले दिन वे युद्ध के लिए रवाना हुए। रुस्तम जब मैदान में पहुंचा तो दूसरी सेनाओं के सिपाही उसे ठगे से देखते रह गए क्योंकि उसकी हर चीज निराली थी- कद-काठी, चाल, फुर्ती और समझ… सभी कुछ।
रुस्तम छलांगें भरते हुए पहले राजा के पास जा पहुंचा। सेनापति ने उसे बंदी बना लिया। जल्दी ही दूसरे, तीसरे, चौथे व पांचवें राजा को भी बंदी बना लिया गया पर जब वे छठे राजा को पकड़ने लगे तो उसके वफादार सिपाही तलवारें ले कर बीच में आ गए।
उस राजा को बंदी तो बना लिया गया, लेकिन इस दौरान रुस्तम के पिछले पांव पर गहरा घाव लग गया था। इस दर्द को उसने किसी के सामने प्रकट नहीं किया। अगले दिन भी वह फिर से मैदान में आया और सातवें राजा को भी बंदी बना लिया गया।
मथुरा ने इस युद्ध को जीत लिया था, लेकिन जब राजा कोअपने प्रिय रुस्तम के बारे में पता चला, तो यह सुन कर बहुत दुख हुआ कि उनका घोड़ा मरने ही वाला है। वे रुस्तम के पास गए और उससे उसकी अंतिम इच्छा के बारे में पूछा।
राजा की आंखों में आंसू थे। रुस्तम ने कहा, “महाराज! आप बंदी बनाए गए राजाओं का वध ना करें। उन्हें उनके राज्यों में जीवित वापस भेज दें। वे पूरी वफादारी से आपका साथ देंगे। अगर आपने उन्हें मार दिया तो और अधिक युद्ध होंगे, बदले की भावना बढ़ेगी।

“आप दयालु हैं, लेकिन शत्रुओं को भी गले लगाएं। इससे पोड़ोसी राजा आपके शत्रु ना रहेंगे, सब आपके अपने हो जाएंगे, महाराज, सेनापति को बहुत बड़ा इनाम देने की कृपा करें,” इतना कहने के बाद रुस्तम दम तोड़ दिया।
रुस्तम की अंतिम इच्छा सुनकर महाराज ही नहीं, वहां आसपास खड़े योद्धाओं की आंखों में भी आंसू आ गए। राजा ने अपने प्रिय घोड़े की अंतिम मानी और उसके नाम से एक स्मृति स्थल बनवाया, जिस पर लिखा गया- प्रिय रुस्तम!
निष्कर्ष (Conclusion)
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि आपको दयालु स्वभाव का होना चाहिए। अगर कोई आपके खिलाफ है तो, उससे बदला लेने के बजाय उसके दिल की बात को जरूर जानना चाहिए। क्या पता ये दुश्मनी, दोस्ती में बदल जाए।