Jitiya Vrat: आश्विन कृष्ण अष्टमी को जीवत्पुत्रिका व्रत होता है। इसे जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत वही स्त्रियां करती हैं, जो पुत्रवती हैं। इस व्रत को करने से पुत्रवती स्त्रियों को पुत्र-शोक नहीं होता। स्त्रियों में इस व्रत का अच्छा प्रचार और आदर है। वे इस व्रत को निर्जला रहकर करती हैं। दिन-रात के उपवास के बाद दूसरे दिन पारण किया जाता है।
जीवत्पुत्रिका व्रत की विधि (Jitiya Vrat Ki Vidhi)
पूजा स्थल को गाय के गोबर से लीप कर स्वच्छ कर दें। जमीन खोदकर एक छोटा सा तालाब बना लें, जिसके पास पाकड़ की डाल को खड़ा कर दें। शालिवाहान राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित या मिट्टी के बनी मूर्ति जल के पात्र में स्थापित करें। इसके बाद पीली और लाल रुई से अलंकृत करें और धूप, दीया, अक्षत, फल, माला और नैवेद्यों से पूजा करें।
मिट्टी और गाय के गोबर से मादा चील और सियारिन की मूर्ति बनाएं और उनके मस्तकों पर लाल सिंदूर लगाएं। वंश की वृद्धि के लिए उपवास कर बांस के पत्रों से पूजा करनी चाहिए, जिसके बाद कथा सुननी चाहिए। इस व्रत के सम्बन्ध में जो किम्वदन्ती प्रचलित है, वह इस प्रकार है-
जीवत्पुत्रिका व्रत कथा (Jitiya Vrat Ki Katha)
प्राचीनकाल में जीमूतवाहन नाम के एक बड़े धर्मात्मा और दयालु राजा हुए हैं। एक बार वह पर्वत-विहार के लिए गये हुए थे। संयोगवश उसी पहाड़ पर मलयवती नाम की एक राज-कन्या देव- पूजा के लिए गई हुई थी। दोनों ने एक-दूसरे को देखा। राज कन्या के पिता और भाई इस कन्या का विवाह उसी राजा से करना चाहते थे। राज- कन्या का भाई भी उस समय पर्वत पर आया हुआ था। उसने दोनों का परस्पर-दर्शन देख लिया। फिर राजकुमारी वहां से चली गई।
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जीमूतवाहन ने पर्वत पर भ्रमण करते-करते किसी के रोने का शब्द सुना। पता लगाया तो ज्ञात हुआ कि शंखचूर्ण सर्प की माता इसलिए रो रही है कि उसका इकलौता पुत्र आज गरुड़ के आहार के लिए जा रहा है।

गरुड़ के आहार के लिए जो स्थान नियत था, उस दिन राजा वहां जाकर स्वयं सांप की भांति लेट गया। गरुड़ ने आकर जीमूतवाहन पर चोंच मारी। राजा चुपचाप पड़े रहे। गरुड़ को आश्चर्य हुआ। सोचने लगा कि आखिर यह है कौन? राजा ने कहा- “आपने भोजन क्यों बन्द कर दिया?”
गरुड़ ने पहचान कर पश्चात्ताप किया। मन में सोचा कि एक यह है जो दूसरे का प्राण बचाने के लिए अपनी जान दे रहा है और एक मैं हूं जो अपनी भूख बुझाने के लिए दूसरे का प्राण ले रहा हूँ। इस अनुताप के बाद गरुड़ ने राजा से वर मांगने को कहा। राजा ने कहा कि आजतक आपने जितने सांप मारे हैं सबको फिर से जिला दीजिये और अब से सर्प न मारने की प्रतिज्ञा कीजिये। गरुड़ ‘एवमस्तु’ कहकर चले गये।
इसी बीच राजकुमारी के पिता जीमूतवाहन को ढूंढ़ते हुए वहां पहुंचे। उस दिन आश्विन शुक्ल अष्टमी थी। राजा ने उन्हें ले जाकर उनके साथ अपनी कन्या का विवाह कर दिया। इसी घटना के उपलक्ष में स्त्रियां यह व्रत रखतीं और ब्राह्मण को दक्षिणा देती हैं।

जीवत्पुत्रिका व्रत की आरती (Jitiya Vrat Ki Aarti)
ॐ जय कश्यप-नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन।
ॐ जय कश्यप-नन्दन॥
सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी।
ॐ जय कश्यप-नन्दन॥
सुर-मुनि-भूसुर-वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली।
ॐ जय कश्यप-नन्दन॥
सकल-सुकर्म-प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी।
ॐ जय कश्यप-नन्दन॥
कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत साहज हरत अति, मनसिज-संतापा।
ॐ जय कश्यप-नन्दन॥
नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी।
ॐ जय कश्यप-नन्दन॥
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान-मोह सब, तत्वज्ञान दीजै।
ॐ जय कश्यप-नन्दन॥
ॐ जय कश्यप-नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन।
ॐ जय कश्यप-नन्दन॥
FAQ
Q. जिताया व्रत क्या है?
Ans. जितिया व्रत महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र, स्वास्थ, सुख, शांति और समृद्धि के लिए रखती हैं।
Q. जितिया में किस भगवान की पूजा होती है?
Ans. इस दिन जीवित वाहन के भगवान की पूजा की जाती है।
Q. जितिया पूजा किस दिन है?
Ans. हिंदू कैलेंडर के अनुसार अश्विन महीने की कृष्ण अष्टमी को जितिया व्रत रखा जाता है।