Satyanarayan Vrat Katha: सत्यनारायण पूजा की विधि, सामग्री और कथा

Satyanarayan Vrat Kathaसत्यनारायण व्रत कथा

Satyanarayan Vrat Katha: हिंदू धर्म में मान्यता है कि सत्यनारायण की कथा (Satyanarayan Vrat) कराने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। मान्यता है कि जो भी इस कथा को सुनते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके व्रत को करने से जीवन के सभी दुख और दरिद्रता का नाश होता है।

(Satyanarayan Vrat Katha)

सत्यनारायण पूजा की सामग्री (Satyanarayan vrat Pooja Samagri)

श्रीसत्यनारायण व्रत किसी दिन भी किया जा सकता है। इसकी विधि यह है पत्तों के खम्भ, आम के पत्तों के बन्दनवार, पंच-पल्लव, सुवर्णमूर्ति (भगवान की प्रतिमा-खासकर शालिग्राम-शिला), कलश, यज्ञोपवीत, पंचरत्न (मोती, मूंगा, सोना, चांदी, तांबा) ग्रहों की स्थापना के लिए लाल कपड़ा (खारुआ या भगवान के आसन के लिए श्वेत वस्त्र), चावल, चन्दन, केसर, अबीर, गुलाल, धूप, पुष्प, तुलसी दल, नारियल, सुपारी अनेक प्रकार के फल, माला, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर), पुण्याहवाचन, कलश, भगदवर्थ पीठम् (पीढ़ा), दक्षिणा के लिए द्रव्य, नैवेद्य, प्रसाद के लिए पंजीरी, अठवाई, केले या ऋतु के जो फल मिल सकें।

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सत्यनारायण पूजा की प्रार्थना (Satyanarayan vrat Pooja Ki Prarthna)

श्रीसत्यदेव के पूजन का व्रती जिस दिन कथा सुनना चाहे, उस दिन सवेरे स्नान करके श्रीसूर्य भगवान को हाथ जोड़े। इसके बाद लाल रंग वाले स्वर्ण के रथ में बैठे हुए लोक को प्रकाश देनेवाले श्री सूर्य भगवान के अन्तर्यामी श्रीकृष्ण भगवान को मानकर उनको श्रद्धापूर्वक नमस्कार करे और चन्दन, चावल, धूप दीपादि से सूर्यदेव की पूजा करके इस प्रकार प्रार्थना करे –

हे सब ग्रहों के स्वामी, तेज के अधिष्ठाता, महान् तेजवान् ! राजाओं के निमित्त बड़ों के निमित्त, इन्द्र के इन्द्रियों के निमित्त और सम्पूर्ण ग्रहों की शान्ति के निमित्त मैं श्रीसत्यदेव का पूजन करना चाहता हूं, अतः मैं आपके द्वारा सबको पत्र-पुष्प जो कुछ है, श्रद्धापूर्वक अर्पण करता हूं। स्वीकार कीजिये।

Satyanarayan Vrat Katha
सत्यनारायण व्रत कथा

इसके बाद चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु आदि सब ग्रहों के अन्तर्यामी श्रीसत्यदेव को जानकर उन सबको एक-एक करके नमस्कार करे। तदनन्तर सर्वभूतों के स्वामी, काल के भी महाकाल, सदैव कल्याणकारी शिवजी की आत्मा में विष्णु भगवान को स्थित जानकर नमस्कार और प्रार्थना करें-

श्रीदेवी, लीलादेवी और भूदेवी आपकी पत्नी हैं, दिन-रात पखवाड़े हैं, नक्षत्र आपके स्वरूप हैं, अश्विनीकुमार आपके तेज में दोनों प्रकाशित हैं, सो हे विष्णुदेव! कृपा करके मुझको वैकुण्ठलोक का वास दो, मुझे दुःखों से मुक्त करो। हे लक्ष्मी के अन्तर्यामी श्रीमन्नारायण ! मैं आपको नमस्कार करता हूं।

सवेरे इस प्रकार व्रत का संकल्प करके व्रती सारे दिन निराहार रहकर विष्णु भगवान का ध्यान या गुण-गान करता रहे। सायंकाल को पूजन का विधान करे। वस्तुतः संक्रांति, पूर्णमासी, अमावस्या या एकादशी में से किसी दिन सत्यदेव का पूजन अति उत्तम माना गया है। वैसे जिस दिन का संकल्प किया गया हो, उसी दिन कर सकता है।

दिनभर व्रत करने के बाद सायंकाल के समय स्नान करके पूजन के स्थान में आकर आसन पर बैठकर आचमन करे तथा पवित्र धारण करे तब श्रीगणेशजी के अन्तर्यामी श्रीमन्नारायण, गौरी के अन्तर्यामी श्रीहर, वरुण के अन्तर्यामी श्रीविष्णु आदि देवताओं की प्रतिष्ठा और आहान करके संकल्प करे-

आज इस गोत्र और इस नाम वाला मैं (जो नाम हो) सब पापों के नाश के लिए, जो आपत्तियों की शान्ति के लिए और सब मनोरथ सिद्धि के लिए सब सामग्री उपस्थित है, इससे आपका पूजन करता हूं।

पुनः गौरी, गणेश, वरुण देवता आदि पांचों लोकपालों और नवग्रह आदि का षोड़शोपचार पूजन करके प्रार्थना करे-

मैं श्रीसत्यदेव का पूजन और कथा श्रवण करता हूं, सो आप सिद्धि प्रदान करें।

तदनन्तर अर्धपाद्य, आचमन, स्नान, चन्दन, चावल, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमनीय, जल, सुगन्धित ताम्बूल, फल, दक्षिणा आदि युक्त विधिवत् मंत्रों सहित पूजन के पूर्व पुष्प हाथ में लेकर श्रीसत्यनारायण का ध्यान करे। इस प्रकार सत्यदेव का पूजन करके हाथों में पुष्प लेकर प्रार्थना करके श्रीसत्यदेव पर पुष्प छोड़े। फिर ध्यानपूर्वक कथा सुने-

सत्यनारायण व्रत की कथा (Satyanarayan Vrat Katha)

नैमिषारण्य में एक समय शौनकादि ऋषियों ने श्रीसूतजी पौराणिक से कहा कि जिस व्रत या तप के प्रभाव से मनुष्य मनोवांछित फल पा सकता है उसका विधिवत् वर्णन कीजिये। श्रीसूतजी बोले कि एक बार इसी प्रकार नारदजी के प्रश्न पर श्रीविष्णु भगवान ने उनको जो व्रत बताया था, उसी को मैं तुमसे कहता हूं, सावधान होकर सुनिये-

सत्यनारायण व्रत की कथा-1 (Satyanarayan Vrat Katha-1)

कथा- किसी समय काशीपुरी में शतानन्द नामक एक अति-दरिद्र ब्राह्मण रहता था। वह भूख-प्यास से व्याकुल होकर पृथ्वी पर भीख मांगता फिरता था। एक दिन श्रीविष्णु देवता ने वृद्ध ब्राह्मण के रूप में प्रकट होकर शतानन्द को सत्यनारायण व्रत का सविस्तार विधान बताया और अन्तर्द्धान हो गये।

शतानन्द अपने मन में सत्यनारायण का व्रत करना निश्चय करके घर आया। इसी चिन्ता में उसे सारी रात नींद नहीं आई। सवेरा होते ही वह सत्यनारायण के व्रत का अनुष्ठान करके भिक्षा के लिए गया, तो उस दिन उसे बहुत धन-धान्य भिक्षा में मिला। सन्ध्या को घर पहुंचकर उसने विधिपूर्वक सत्यदेव का पूजन किया। सत्यनारायण की कृपा से वह थोड़े ही दिनों में ऐश्वर्यवान हो गया। वह जब तक जीवित रहा, प्रतिमास सत्यदेव का पूजन और व्रत करता रहा। अन्त में वह विष्णुलोक को गया ।

ऋषियों ने पूछा कि शतानन्द के बाद फिर किसने यह व्रत किया? इसके उत्तर में उन्होंने कहा कि सूतजी! शतानन्दा वैभववान होकर एक समय बन्धु-बान्धव समेत कथा सुन रहे थे। उसी समय एक लकड़हारा भूखा-प्यासा वहां आ पहुंचा। उसके पूछने पर ब्राह्मण ने कहा कि यह सत्यनारायण का व्रत मनोवांछित फल देनेवाला है। मैं पहले बहुत दरिद्र था। इसी व्रत के करने से मुझे यह सब ऐश्वर्य प्राप्त हुआ है। यह सुनकर लकड़ी बेचनेवाला बहुत प्रसन्न हुआ। वह प्रसाद पाकर और जल पीकर चला गया।

श्रीसत्यदेव का मन में स्मरण करता हुआ वह लकड़ी बेचने बाजार में गया। उस दिन उसे लकड़ियों का दुगुना मूल्य मिला। उसने उन्हीं पैसों से केले, दूध, दही, शक्कर आदि पूजन की सामग्री मोल ली और घर चला गया।

घर में उसने अपने भाई-बन्धु और पास-पड़ोस के लोगों को एकत्र करके विधिपूर्वक सत्यनारायण का पूजन किया और श्रीसत्यदेव की कृपा से बड़ा धनवान और ऐश्वर्यवान हो गया। उसने यावज्जीवन इस लोक में सब तरह के सुख पाये और मरने पर सत्यलोक में गया।

Satyanarayan Vrat Katha
सत्यनारायण व्रत कथा

सत्यनारायण व्रत की कथा-2 (Satyanarayan Vrat Katha-2)

इसके बाद सूतजी ने एक कथा और भी कही। उन्होंने कहा कि प्राचीन समय में उल्कामुख नाम का एक राजा था। वह बड़ा ही सत्यवादी और जितेन्द्रिय था। उसकी रानी भी बड़ी धर्मनिष्ठ थी। एक समय राजा रानी समेत भद्रशीला नदी के किनारे श्रीसत्यनारायण की कथा सुन रहे थे। उसी समय एक बनिया वहां पहुंचा।

बनिये की नौका में असंख्य रत्न और अनेक प्रकार के मूल्यवान पदार्थ भरे थे। नदी के किनारे नाव लगाकर वह पूजा की जगह पर गया। वहां का चमत्कार देखकर उसने राजा से उसके सम्बन्ध में पूछा।

राजा ने उत्तर दिया कि हम अतुल तेजवान विष्णु भगवान का पूजन कर रहे हैं। यह व्रत मनुष्य को मनोवांछित फल देनेवाला है। राजा की ऐसी वाणी अपने घर गया। सुनकर बनिया अपने घर जाकर उसने अपनी स्त्री से उक्त व्रत का सारा हाल कहा और यह भी संकल्प किया कि जब मेरे सन्तान होगी, तब मैं यह व्रत करूंगा।

उसकी स्त्री का नाम लीलावती था। वह कुछ दिनों बाद गर्भवती हुई। दस महीने पूरे होने पर उसके एक कन्या पैदा हुई। वह कन्या चन्द्रमा की कलाओं की भांति दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी। इस कारण उसका नाम कलावती रखा गया।

एक दिन लीलावती ने पति से कहा कि पहले जिस व्रत का संकल्प किया था, उसे अब तक आपने नहीं किया, इसका क्या कारण है ? तब बनिये ने कहा कि कन्या के विवाह के समय व्रत करूंगा। यह कहकर बनिया अपने काम-धन्धे में लग गया और कन्या दिन-प्रतिदिन बड़ी होने लगी।

कन्या को वय प्राप्त देखकर बनिये ने उत्तम वर की खोज में जहां-तहां दूत भेजे। उसके दूतों ने कंचनपुर नामक नगर में एक बनिये का अति सुन्दर सुशील गुणवान बालक देखा। उसी के साथ उसने सगाई कर दी और विधिपूर्वक उसके साथ विवाह कर दिया परन्तु फिर भी बनिये ने संकल्प किये हुए सत्यदेव के व्रत को नहीं किया, जिससे सत्यदेव उस पर अप्रसन्न हो गये।

कुछ दिनों बाद बनिया व्यापार के लिए बाहर चला गया। ससुर-दामाद दोनों समुद्र के किनारे रत्नसारपुर में व्यापार करने लगे। इसी बीच सत्यदेव ने कोप करके उनको शाप दिया।

रत्नसारपुर के राजा का नाम चन्द्रकेतु था। दैवात उसके खजाने में चोर घुसे और बहुत-सा धन, रत्न चुरा कर ले गये। राजा के सिपाहियों ने चोरों का पीछा किया। चोरों ने जब देखा कि सिपाहियों से बचना कठिन है, तब उन्होंने राजकोष का सब धन उस जगह डाल दिया, जहां बनियों का डेरा था, और भाग गये।

राजदूत चोरों को खोजते हुए उसी जगह जा पहुंचे और बनिये को चोर समझकर उन्होंने पकड़ लिया। राजा के पास खबर पहुंची कि चोर पकड़े गये हैं, तब उसने हुक्म दिया कि दोनों चोर कारागार में डाल दिये जाएं। बनियों ने अपनी सफाई पेश करने के लिए बहुत कुछ कहा, पर सत्यदेव के कोप के कारण किसी ने कुछ नहीं सुना। राजा ने उनका सब धन अपने खजाने में रखवा लिया।

इधर लीलावती और कलावती मां-बेटी दोनों पर भी बड़ी विपत्ति पड़ी। एक दिन कलावती अत्यन्त भूख-प्यास से व्याकुल एक देव-मन्दिर में चली गई। वहां सत्यनारायण की कथा हो रही थी। वहां बैठकर वह कथा सुनने लगी।

प्रसाद लेकर जब वह घर गई तब कुछ रात्रि हो गई थी। माता के पूछने पर उसने सब बात कह दी। उसकी बात सुनकर लीलावती भी व्रत करने के लिए तैयार हुई। उसने बन्धु-बान्धव समेत श्रद्धापूर्वक कथा सुनी और विनीत भाव से प्रार्थना की और कहा कि मेरे पति ने संकल्प करके जो व्रत नहीं किया, उसी से आप अप्रसन्न हुए कृपा करके उनका अपराध क्षमा कीजिये। लीलावती की इस विनम्र प्रार्थना पर सत्यनारायण प्रसन्न हो गये ।

सत्यदेव ने स्वप्न में राजा चन्द्रकेतु को दर्शन देकर कहा कि सवेरा होते ही दोनों बनियों को कारागार से छोड़ दो और उनका सारा धन दे दो, नहीं तो पुत्र-पौत्र समेत तुम्हारा सारा राज नष्ट कर दूंगा। इतना कहकर सत्यदेव अन्तर्द्धान हो गये। सवेरे राजा की आज्ञा से बनियों की बेड़ियां काट दी गई और उन्हें मुक्त कर दिया गया।

राजा से विदा होकर दोनों बनिये ब्राह्मणों को धन बांटते हुए आनन्दपूर्वक घर की ओर चले। वे थोड़ी ही दूर गये होंगे कि सत्यनारायण संन्यासी के रूप में उनके पास आकर बोले कि तुम्हारी नौकाओं में क्या है ? इसके उत्तर में बनिये ने हंसते हुए कहा कि इन नौकाओं में लतापत्रों के सिवाय और कुछ भी नहीं है।

यह सुनकर संन्यासी ने कहा कि तुम्हारा वचन सत्य हो। इतना कहकर संन्यासी वहां से चला गया और थोड़ी दूर जाकर ठहर गया। दण्डी के चले जाने पर बनिये शौचादि क्रिया के लिए नावों पर से उतरे। तब उन्होंने देखा कि दोनों नौकाएं हल्की होकर ऊपर उठ रही हैं।

यह देखकर उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने नौकाओं में जाकर जो देखा तो वहां लतापत्र भरे हुए थे। यह देखकर बनिया तो बेहोश होकर गिर पड़ा, परन्तु उसके दामाद ने दृढ़तापूर्वक कहा कि इस प्रकार घबड़ाने की कोई बात नहीं है। यह सब दण्डी स्वामी की करामात है। चलकर उनसे प्रार्थना कीजिये तो उनकी कृपा से फिर सब जैसे-का-तैसा हो जायगा। दामाद की बात मानकर बनिया दण्डी स्वामी के पास दौड़ा गया और उनके चरणों में गिरकर भक्तिपूर्वक क्षमा मांगी।

उसकी विनीत और भक्तिमय स्तुति सुनकर भगवान प्रसन्न हो गये और इच्छित वरदान देकर वे उसी जगह अन्तर्द्धान हो गये। बनियों ने नावों के पास आकर देखा, तो वे धन-रत्नों से परिपूर्ण थीं। तब उसने कहा कि भगवान सत्यदेव ने कृपा करके मुझे मनोवांछित वरदान दिया है। अब मैं अवश्य भगवान का पूजन करूंगा। तदनन्तर उसने उसी जगह पूजन किया और कथा सुनी। तब वह घर की ओर चला।

अपने नगर के पास पहुंचकर उसने लीलावती के पास अपने आने का समाचार भेजा। उस समय लीलावती श्रीसत्यनारायण की कथा सुन रही थी। उसने पुत्री कलावती से कहा कि तुम्हारे पिता। आ गये। शीघ्र ही कथा पूरी करके उनके स्वागत के लिए चलो।

माता की ऐसी वाणी सुनकर कलावती तो इतनी प्रसन्न हुई कि वह कथा का प्रसाद लेना भी भूल गई और कथा पूरी होते ही पिता और पति के स्वागत के लिए दौड़ी गई। परन्तु ज्योंही नदी के किनारे पहुंची, त्योंही बनिये के दामाद की नौका जल में डूब गई।

यह देखते ही बनिया हाय-हाय करके छाती पीटने लगा और रोने लगा। लीलावती भी दामाद के शोक में विलाप करने लगी। कलावती तो डूबे हुए पति के खड़ाऊं लेकर सती होने को उद्यत हुई। उसी समय आकाशवाणी हुई- ‘हे वणिक ! तेरी कन्या सत्यदेव के प्रसाद का अनादर करके पति से मिलने दौड़ी आई है। यदि वह जाकर प्रसाद ले और फिर आए, तो उसका पति जी उठेगा। यह सुनते ही कलावती घर की ओर दौड़ी गई और सत्यदेव का प्रसाद लेकर जब नदी के किनारे आई, तब देखती क्या है कि उसके पति की नौका नदी के जल पर तैर रही है।

बनिया भी यह देखकर प्रसन्न हो गया। वह बन्धु-बान्धवों समेत अपने घर गया और जब तक बनिया जीवित रहा, प्रति पूर्णमासी, अमावस्या अथवा संक्रान्ति को श्रीसत्यनारायण की कथा। सुनता रहा।

Satyanarayan Vrat Katha
सत्यनारायण व्रत कथा

सत्यनारायण व्रत की कथा-3 (Satyanarayan Vrat Katha-3)

उक्त कथा कहने के पश्चात श्रीसूतजी ने एक और कथा कही। उन्होंने कहा कि कोई एक तुंगध्वज नामक राजा था। वह प्रजापालन में तत्पर एवं महान् प्रतिभाशाली था। एक बार वह वन में शिकार खेलने गया। बहुत से जंगली जानवरों को मारकर वह जब महल की ओर जा रहा था तब उसने देखा कि एक बरगद के पेड़ के नीचे बहुत-से गोप-ग्वाल इकट्ठे होकर सत्यनारायण की कथा सुन रहे हैं। राजा ने ना तो सत्यदेव को नमस्कार किया, ना पूजन गया। परन्तु गोपगण राजा को देखकर स्वयं प्रसाद लेकर दौड़े गये और राजा के सामने प्रसाद रख दिया।

राजा प्रसाद की कुछ रहे के पास भी परवाह ना करके महल की ओर चला गया। राज-द्वार पर पहुंचते ही उसे मालूम हुआ कि उसके पुत्र-पौत्र, धन-धान्यादि सब नष्ट हो गये हैं। तब उसे ध्यान आया कि मैंने सत्यनारायण के प्रसाद का अनादर किया है। उसी के कारण इस दुःख को प्राप्त हुआ हूं।

यह सोचकर राजा वहां दौड़ा गया, जहां लोग पूजन कर रहे थे। उसने उन सबके साथ मिलकर श्रद्धा और भक्ति से सत्यदेव का पूजन कराकर प्रसाद पाया। फिर जो घर आया तो देखता क्या है कि उनकी नष्ट हुई सम्पत्ति पुनः पूर्ववत् सम्पन्न है और मृत पुत्र-पौत्रादि भी जी उठे हैं। तब से वह राजा सदैव समय-समय पर श्री सत्यनारायण का व्रत करता रहा।

सत्यनारायण व्रत के समय पढ़े जाने वाले मंत्र (Satyanarayan Vrat Mantra)

ध्यान :
हाथ में अक्षत लेकर श्री सत्यनारायण भगवान का ध्यान करते हुए मंत्र पढ़ें-

ॐ सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं निहितंच सत्ये।
सत्यस्य सत्यामृत सत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः॥
ध्यायेत्सत्यं गुणातीतं गुणत्रय समन्वितम्‌।
लोकनाथं त्रिलोकेशं कौस्तुभरणं हरिम्‌॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।

(इसके बाद पुष्प अर्पित करें)

आह्वान :
आगच्छ भगवन्‌! देव! स्थाने चात्र स्थिरो भव।
यावत्‌ पूजां करिष्येऽहं तावत्‌ त्वं संनिधौ भव॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
श्री सत्यनारायणाय आवाहयामि
आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।

(आह्वान के लिए पुष्प अर्पित करें)

आसन :
अनेक रत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्‌।
भवितं हेममयं दिव्यम्‌ आसनं प्रति गृह्याताम॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
आसनं समर्पयामि।

(इसके बाद पुष्प अर्पित करें)

पाद्य :

नारायण नमस्तेऽतुनरकार्णवतारक।
पाद्यं गृहाण देवेश मम सौख्यं विवर्धय॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
पादयोः पाद्यं समर्पयामि।

(इसके बाद पाद्य अर्पित करें)

अर्घ्य :

गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्घ्यं सम्पादितं मया।
गृहाण भगवन्‌ नारायण प्रसन्नो वरदो भव॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि।

(अर्घ्यपात्र से चन्दन मिश्रित जल नारायण के हाथों में दें)

आचमन :

कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु शीतलम्‌।
तोयमाचमनीयार्थं गृहाण परमेश्वर॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
आचमनीयं जलं समर्पयामि।

(कपूर से सुवासित जल चढ़ाएं)

स्नान :

मन्दाकिन्याः समानीतैः कर्पूरागुरू वासितैः।
स्नानं कुर्वन्तु देवेशा सलिलैश्च सुगन्धिभिः॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
स्नानीयं जलं समर्पयामि।

(स्नानीय जल अर्पित करें)

स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।

(इसके बाद ‘ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः’ बोलकर आचमन हेतु जल दें)

दुग्ध स्नान :

कामधेनुसमुत्पन्नां सर्वेषां जीवनं परम्‌।
पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्‌॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
पयः स्नानं समर्पयामि।
पयः स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

(कच्चे दूध से स्नान कराएं, पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं)

दधिस्नान :

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्‌।
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
दधिस्नानं समर्पयामि।
दधिस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

(दधि से स्नान कराएं, जिसके बाद शुद्ध जल से स्नान)

घृत (घी) स्नान :

नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम्‌।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
घृतस्नानं समर्पयामि।
घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

(घृत स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएं)

मधु स्नान :

पुष्परेणुसमुत्पन्नं सुस्वादु मधुरं मधु।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
मधुस्नानं समर्पयामि।
मधुस्नानन्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

(शहद स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएं)

शर्करा स्नान :

इक्षुसारसमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम्‌।
मलापहारिकां दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
शर्करास्नानं समर्पयामि
शर्करा स्नानान्ते पुनः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ।

(शर्करा स्नान कराकर जल से स्नान कराएँ।)

पंचामृत स्नान :

दूध, दही, घी शक्कर एवं शहद मिलाकर पंचामृत बनाएं और इस मंत्र के साथ स्नान कराएं।

पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम्‌।
पंचामृतं मयाऽऽनीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
पंचामृतस्नानं समर्पयामि
पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

(पंचामृत स्नान व जल से स्नान कराएँ।)

FAQ

Q. सत्यनारायण की कथा कब की जाती है?
Ans. सत्यनारायण की कथा किसी भी महीने की शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा तिथि को होती है।

Q. सत्यनारायण भगवान की कथा करवाने से क्या होता है?
Ans. सत्यानारायण की कथा से घर में सुख-समृद्धि आती है। जो इस कथा को सुनते हैं, उनकी मनोकामएं पूरी होती हैं।

Q. क्या सत्यनारायण और विष्णु एक ही हैं?
Ans. जी हां! सत्यनारायण ही भगवान विष्णु का दूसरा नाम है। इसका संधिविच्छेद किया जाए तो- सत्य + नारायण।

Q. सत्यनारायण की कथा कितने बजे करनी चाहिए?
Ans. सत्यनारायण की कथा के लिए पूर्णिमा के दिन सुबह और शाम दोनों ही समय शुभ हैं, लेकिन शाम के समय पूजा करना सबसे उत्तम होता है, क्योंकि कई बार सुबह के समय ही पूर्णिमा तिथि समाप्त हो जाती है। ऐसे में शाम के समय सत्यनारायण की पूजा को प्राथमिकता दी जाती है।

Q. सत्यनारायण पूजा में कौन बैठ सकता है?
Ans. किसी भी उम्र का व्यक्ति इस पूजा में बैठ सकता है। इस पूजा में इसकी परवाह नहीं की जाती कि वह कोई नर है या फिर नारी।