करवा चौथ पूजा विधि, कथा और आरती | Karwa Chauth Puja Vidhi, Katha aur Aarti

करवा चौथ पूजा विधि, कथा और आरती

Karwa Chauth Puja Vidhi, Katha aur Aarti: कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को करवा चौथ कहते हैं। इस व्रत को करने का अधिकार केवल स्त्रियों को ही है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां चावल पीसकर, दीवार पर करवा चौथ बनाती हैं।

Karwa Chauth Puja Vidhi, Katha aur Aarti

आजकल स्त्रियां बाजार से करवा चौथ का कैलेंडर लाकर दीवार पर लगा देती हैं। इस दिन निर्जल व्रत रखा जाता है। रात्रि में जब चंद्रमा निकल जाए, तब उसे अर्घ्य देकर भोजन किया तथा जल पिया जाता है।

इसमें गणेश जी का पूजन करके उन्हें पूजन दान से प्रसन्न किया जाता है इसका विधान चैत्र की चतुर्थी में लिख दिया है। परन्तु विशेषता यह है कि इसमें गेहूँ का करवा भर के पूजन किया जाता है और विवाहित लड़कियों के यहाँ चीनी के करवें पीहर से भेजे जाते हैं।

Karwa Chauth Puja Vidhi, Katha aur Aarti
करवा चौथ

व्रत रखने वाली स्त्री को चाहिए कि प्रातःकाल शौचादि नित्य-क्रिया से निवृत्त होकर आचमन करके व्रत का संकल्प करें। व्रत का संकल्प करके चन्द्रमा की मूर्ति लिखे और उसके नीचे शिव, षण्मुख और गौरी की प्रतिमा लिखकर षोड़शोपचार से उनका पूजन करें। पूजन के पश्चात् पुओं से भरे हुए तांबे या मिट्टी के कुल्हड़ ब्राह्मणों को दान करें।

करवा चौथ का उजमन

उजमन करने के लिए एक थाली में 13 जगह चार-चार पूड़ी और थोड़ा सा सीरा रख लें। उसके ऊपर एक साड़ी ब्लाउज और रुपये, जितना चाहें रख लें। उस थाली के चारों ओर रोली, चावल से हाथ फेर कर अपनी सासू जी के पांव लगकर उन्हें दें। उसके बाद तेरह ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा देकर तथा बिन्दी लगाकर उन्हें विदा करें। यही करवा चौथ के व्रत और उजमन का विधान है।

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करवा चौथ व्रत की कथा-1 (Karwa Chauth Vrat Ki Katha)

एक समय अर्जुन कील गिरि पर चले गये थे। उस समय द्रौपदी ने मन में विचार किया कि यहां अनेक प्रकार के विघ्न उपस्थित होते हैं और अर्जुन हैं नहीं, अब मैं क्या करूं। यह विचारकर द्रौपदी ने भगवान कृष्णचन्द्र का ध्यान किया। भगवान के पधारने पर उसने हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि हे भगवन् ! इस प्रकार के विघ्नों की शान्ति का यदि कोई सुलभ उपाय हो तो बताइये।

यह सुनकर श्रीकृष्ण बोले कि एक समय पार्वती ने शिवजी से ऐसा प्रश्न किया था, जिसके उत्तर में शिवजी ने उनको सर्व-विघ्न-विनाशक करवा-चतुर्थी का व्रत बतलाया था। इस कारण है द्रौपदी! यदि तुम भी करवा-चतुर्थी के व्रत को विधिपूर्वक करोगी तो सर्व विघ्नों का नाश होगा।

Karwa Chauth Vrat Ki Katha
करवा चौथ व्रत की कथा

सौभाग्य और धन-धान्य की वृद्धि चाहनेवाली स्त्रियों को इस व्रत कौरवों की पराजय होकर पाण्डवों की विजय हुई। इस कारण पुत्र, सूतजी ने कहा कि जब द्रौपदी ने व्रत का आचरण किया, तब को अवश्य करना चाहिए।

करवा चौथ व्रत की कथा-2 (Karwa Chauth Vrat Ki Katha)

एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन करने का आग्रह किया।

इस पर बहन ने उत्तर दिया- भाई! अभी चांद नहीं निकला है, उसके निकलने पर अर्घ्य देकर भोजन करूंगी। बहन की बात सुनकर भाइयों ने यह काम किया कि नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए उन्होंने अपनी बहन से कहा-बहन ! चांद निकल आया है, अर्घ्य देकर भोजन जीम लो।

Karwa Chauth Vrat Ki Katha
करवा चौथ व्रत की कथा

यह सुन उसने अपनी भाभियों से कहा कि आओ तुम भी चंद्रमा को अर्घ्य दे लो, किंतु वे इस कांड को जानती थीं, इसलिए उन्होंने कहा-बहन जी! अभी चांद नहीं निकला, तेरे भाई तेरे से धोखा करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं।

भाभियों की बात सुनकर भी उसने कुछ ध्यान न दिया और भाइयों द्वारा दिखाए प्रकाश को ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेश जी उस पर अप्रसन्न हो गए। इसके बाद उसका पति बहुत बीमार हो गया और जो कुछ घर में था, उसकी बीमारी में लग गया।

जब उसे अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो पश्चाताप करने लगी। गणेश जी की प्रार्थना करते हुए, विधि विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत करना आरंभ कर दिया। उसने श्रद्धानुसार सबका आदर करने एवं सबसे आशीर्वाद ग्रहण करने में ही अपने मन को लगा दिया।

इस प्रकार उसके श्रद्धा-भक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उन्होंने उसके पति को जीवन दान देकर उसे आरोग्य करने के पश्चात धन-संपत्ति से भी युक्त कर दिया। इस प्रकार जो कोई छल-कपट को त्यागकर श्रद्धा भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेंगे वे सब प्रकार से सुखी होते हुए क्लेशों से मुक्त हो जाएंगे।

गणेशजी विनायक जी की कहानी (Shri Ganesh Vinayak Ji Ki Katha)

एक अंधी बुढ़िया थी जिसका एक लड़का और लड़के की बहू थी। वह गरीब और अंधी बुढ़िया नित्यप्रति गणेशजी की पूजा किया करती थी। गणेश जी साक्षात सन्मुख आकर कहते थे कि बुढ़िया माई तु जो चाहे सो मांग ले।

बुढ़िया कहती मुझे मांगना नहीं आता सो कैसे और क्या मांगूं। तब गणेश जी बोले कि अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग लो। तब बुढ़िया ने अपने पुत्र और पुत्रवधू से पूछा तो बेटा बोला कि धन मांग ले और बहू ने कहा कि पोता मांग।

तब बुढ़िया ने सोचा कि बेटा-बहू हू तो तो अपने-अपने मतलब ले। की बातें कर रहे हैं। अतः उस बुढ़िया ने पड़ोसियों से पूछा तो पड़ोसियों ने कहा कि बुढ़िया तेरी थोड़ी-सी जिंदगी है। क्यों मांगे धन और क्यों मांगे पोता, तू तो केवल अपने नेत्र मांग ले जिससे तेरी शेष जिंदगी सुख से व्यतीत हो जाए।

Shri Ganesh Vinayak Ji Ki Katha
गणेशजी विनायक जी की कहानी

उस बुढ़िया ने बेटे और बहू तथा पड़ोसियों की बात सुनकर घर में जाकर सोचा, जिससे बेटा-बहू और मेरा सबका ही भला हो वह भी मांग लूं और अपने मतलब की चीज भी मांग लूं। जब दूसरे दिन श्री गणेश जी आए और बोले, बोल बुढ़िया क्या मांगती है। हमारा वचन है जो तू मांगेगी सो ही पाएगी।

गणेश जी के वचन सुनकर बुढ़िया बोली- हे गणेशराज! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों में प्रकाश दें, नाती पोता दें और समस्त परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें।

बुढ़िया की बात सुनकर गणेश जी बोले बुढ़िया मां तूने तो मुझे ठग लिया। खैर जो कुछ तूने मांग लिया वह सभी तुझे मिलेगा। यह कहकर गणेश जी अंतर्धान हो गए। हे गणेश जी जैसे बुढ़िया मां को मांगे अनुसार आपने सब कुछ दिया है वैसे ही सबको देना और हमको भी देने की कृपा करना।

करवा चौथ की आरती (Karwa Chauth Ki Aarti)

ओम जय करवा मैया
माता जय करवा मैया
जो व्रत करे तुम्हारा
पार करो नइया
ओम जय करवा मैया।

सब जग की हो माता
तुम हो रुद्राणी
यश तुम्हारा गावत
जग के सब प्राणी
ओम जय करवा मैया।

कार्तिक कृष्ण चतुर्थी
जो नारी व्रत करती
दीर्घायु पति होवे
दुख सारे हरती
ओम जय करवा मैया।

होए सुहागिन नारी
सुख संपत्ति पावे
गणपति जी बड़े दयालु
विघ्न सभी नाशे
ओम जय करवा मैया।

करवा मैया की आरती
व्रत कर जो गावे
व्रत हो जाता पूरन
सब विधि सुख पावे
ओम जय करवा मैया।