Hindi Kahaniyan: कपि बंदर की समझदारी

कपि बंदर की समझदारी

Hindi Kahaniyan: 19वीं सदी में बंदरों का विशाल कुनवा दिल्ली के घने जंगल में रहता था। उनका नेता, जिसका नाम कपि था, वो बहुत समझदार था। कपि का शरीर अत्यंत विशाल था। कपि जितना ही बड़ी कद-काठी का था, उतना ही उदार और बुद्धिमान भी। लोग उसे सिद्ध आत्मा मानते थे।

कपि अपनी प्रजा की सुरक्षा के बारे में हमेशा सोचता रहता। वह वानर सेना को हर तरह के निर्देश देता और उनकी रक्षा करता। एक दिन कपि ने कहा, “मेरे दोस्तो, जंगल के सभी फल सेहतमंद नहीं होते। इनमें से कुछ जहरीले और खतरनाक भी होते हैं। किसी भी नई चीज को खाने या पीने से पहले उसकी जांच जरूर कर लें। फिर उसके बारे में मुझसे पूछ लें।” कपि की बात सभी बंदर समझ गए थे। उन्होंने एक स्वर में सहमति जताई।

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एक दिन वानर सेना अपने भोजन की तलाश में एक ऐसे शांत और सुंदर तालाब के पास पहुंची, जिसके आस-पास लंबे बांसों का झुंड था। बंदरों को बहुत प्यास लगी थी। सभी एक-एक कर पानी पीने के लिए वे वहां रुकने लगे, तभी एक बंदर चिल्लाया, “रुको! तुम्हें याद नहीं कि हमारे नेता ने क्या कहा था?”

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कपि बंदर की समझदारी

सभी ने एक आवाज में कहा- “नहीं! हमें सब कुछ याद है। हम अपने नेता के आने तक तालाब से पानी नहीं पिएंगे।” इतना कहकर वह सब वहीं बैठ गए और अपने नेता कपि के आने का इंतजार करने लगे।

जब कपि वहां आया तो उसने तालाब का एक चक्कर काटा और उसके आसपास की जमीन को ध्यान से देखा जांचा-परखाष फिर वह वहां गया जहां सारे बंदर उसका इंतजार कर रहे थे। उसने कहा, “दोस्तो, यहां पानी की ओर जाने वाले पैरों के निशान तो दिख रहे हैं, लेकिन उस ओर से वापस आने वाले पैरों के निशान नहीं दिखाई दे रहे।”

कपि ने आदेश दिया कि इस तालाब के पानी में मत जाना। मुझे लगता है कि इसमें कोई शैतान रहता है, जो पानी पीने के लिए आने वालों को निगल लेता है। यही वजह है कि वहां से वापस आने वाले जानवरों के पैरों के निशान नहीं दिखाई दिखते हैं। लगता है मानो कोई तालाब से जिंदा वापस ही नहीं आता।

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सारे बंदर बहुत थके हुए थे इसलिए वे वहीं चुपचाप बैठ गए। कुछ ही देर बाद, उन्होंने पानी से एक भयानक राक्षस को बाहर आते देखा। वह सफेद चेहरे, बड़े से पेट, हरी आंखों, लाल पंजों और नुकीले दांतों वाला एक ब्रह्म राक्षस था।

ब्रह्म राक्षस गरजा। उसने तेज आवाज में पूछा, “तुम लोग पानी क्यों नहीं पी रहे? तुम तो प्यासे हो, तुम्हें पानी अवश्य पीना चाहिए।” इतना कहते ही वह तालाब में वापस लौट गया।

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कपि बंदर की समझदारी

प्यासे बंदरों ने अपने राजा कपि की ओर देखा और कपि ने बांसों की ओर। बांसों में गांठें थीं इसलिए वे अंदर से खोखले नहीं थे। कपि बोधिसत्व था। उसने बांस में एक छड़ी डाल कर घुमाई तो उसकी सभी गांठ खुल गई और वह पूरी तरह से खोखला हो गया। अब उस बांस की मदद से दूर खड़े हो कर ही, तालाब से पानी पीया जा सकता था।

जब कपि उस बांस से पानी पीने लगा तो एक चमत्कार हुआ। बाकी बांसों की गांठें भी अपने आप खुल गई। अब सारे बंदर उनसे पानी पी सकते थे। सभी ने तालाब के जल में घुसे बिना दूर बैठकर अपनी प्यास बुझाई।

निष्कर्ष (Conclusion)

इस तरह उनके नेता कपि ने उन्हें सिखा दिया था कि किसी भी नई स्थिति का सामना करने से पहले भली प्रकार से अच्छी तरह से उसकी जांच कर लेनी चाहिए। जो लोग कोई भी निर्णय लेते समय अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते, वो स्वयं विपत्ति को बुलावा देते हैं, उसमें फंसते हैं और फिर नष्ट हो जाते हैं।