Hindi Kahaniyan: एक बार बोधिसत्व बहुत ही धनवान परिवार में पैदा हुए। उनके पास वे सभी सुख-साधन थे जो कि पैसे से खरीदे जा सकते हैं। लेकिन कुछ ही समये में वो उन सभी सुख-सुविधाओं से उकता गए।
वो जिस प्रकार का जीवन जी रहा थे, उन्हें उसमें कोई आनंद नहीं आ रहा था। उन्हें लगा कि अगर वे सब कुछ त्याग कर भिक्षु बनकर रहेंगे तो उन्हें बहुत आनंद आएगा। यही सोचकर वो एक भिक्षु बन गए। जब उन्हें भूख लगती तो वे भिक्षा मांग कर अपना पेट भर लेते। इसी तरह उनका गुजरा चलाने लगा।
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एक दिन जब भिक्षु ने देखा कि उसके पास नमक नहीं है तो वह भिक्षा मांगने निकल पड़ा। एक कारवां देखा और नमक मांगा। उन्होंने उसे नमक दे दिया। उसने कुछ दूर तक उनके साथ चलने का निर्णय लिया। रात होते ही उन्होंने एक बड़े पेड़ के पास रुकने का फैसला किया और वहां अपना डेरा डाल दिया।

साधु को रात में पैदल चलते हुए ध्यान लगाने और पूजा-पाठ करने की आदत थी। इसलिए वह पेड़ के इर्द-गिर्द चक्कर लगाकर ध्यान लगाने लगा। जल्दी ही ध्यान में आनंद आने लगा क्योंकि घने वन में किसी भी तरह का शोर-शराबा नहीं था।
उसी स्थान पर 7 चोरों का एक दल कारवां को लूटने की फिराक में था। थोड़ी ही देर में कारवां के सभी सदस्य गहरी नींद में सो गए लेकिन वह भिक्षु पेड़ के चक्कर लगाने में व्यस्त था। वह तब तक चलता रहता था जब तक वह पूरी तरह से ध्यान में रमकर परम शांति न प्राप्त कर ले। चोरों के दल ने बहुत देर तक इंतजार किया कि वह भिक्षु सो जाए तो वे जा कर कारवां को लूट लें। वे सारी रात इंतजार करते रहे। लेकिन भिक्षु पेड़ के चक्कर लगाता रहा। इसलिए उनमें से 5 चोर तो थक कर सो भी गए।
सुबह हो गई और सारी रात इंतजार करने के बाद भी चोरों के हाथ कुछ भी नहीं लगा। उनका सारा परिश्रम बेकार चला गया था। इसलिए वे भिक्षु पर नाराज थे। उल्टा लोगों ने चोरों को पकड़ लिया। काफिले के लोगों ने जब उन्हें घेर कर पूछा कि उन्होंने चोरी क्यों नहीं की, तो चोरों में से एक बोला, “अरे! तुम्हारे पास बहुत अच्छा चौकीदार है, जो सारी रात तुम्हारे सामान की रक्षा करता रहा। इसे कुछ इनाम दो। अगर यह रात को सो जाता तो हम तुम्हारा सारा सामान लूटकर ले जाते।”
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कारवां के सभी लोग बड़े हैरान हुए। उन्होंने साधु की ओर बहुत नम्रता से देखा और बोले, “यह हमारा चौकीदार नहीं है। यह तो एक भिक्षु है।” फिर उन्होंने हैरान होते हुए भिक्षु से पूछा, “क्या तुम्हें रात को इन चोरों से डर नहीं लगा?”

“मैं तो इन्हें भी काफिले का ही सदस्य समझ रहा था। फिर मुझे भला इनसे डरने की क्या जरूरत थी? मेरे पास कोई कीमती सामान तो है नहीं, जो मैं इनसे डरता। मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे ये लोग चुरा सकें। मेरे पास तो केवल दया और करुणा है।” बोधिसत्व के रूप में जीने वाले भिक्षु ने ऐसा कहते ही अपनी भिक्षा वाला कटोरा और गमछा उठाया और अपने रास्ते चल पड़ा।
क्या सीख मिली? (Moral Of The Story)
इस कहानी से सीख मिलती है कि हमें बेकार किसी से नहीं डरना चाहिए। हम किसी चीज का मोह भी नहीं होना चाहिए। जीवन के लिए जितना जरूरी है, उतना पाकर ही हम खुश रह सकते हैं।