गांव के जीवन पर निबंध | Essay on Village Life

Essay on Village Lifeगांव के जीवन पर निबंध

Essay on Village Life: भारतीय गाँव (indian village) अपनी प्राकृतिक शोभा (natural beauty) के लिए प्रसिद्ध (famous) हैं। यदि जीवन का सच्चा (truth of life) आनन्द कहीं प्राप्त होता है, तो वह गाँवों में ही प्राप्त होता है। वहाँ का त्याग सहानुभूति (Sacrifice empathy), सहयोग, प्रेम और निष्कपट व्यवहार (fair dealing) किसे प्रभावित नहीं करता। वहीं स्वास्थ्य की प्राप्ति (recovery of health) होती है और सुन्दरता देखने को भी मिलती है।

गांव का जीवन (Essay on Village Life)

हमारा देश गांवों का है। तभी तो किसी ने कहा है। अपना हिन्दुस्तान कहाँ वह बसा हमारे गाँवों में। गाँव के झाड़ बड़ लहराती सुखद हवा, हरे भरे मैदान, और लहराती हरी भरी खेती किसके मन को नहीं मोहती ? गाँव का प्रातः- कालीन सूरज जब सारे गाँव को अरुणिमा में डुबो देता है और तालाब के कमल खिल उठते हैं, वह सुन्दरता किसे अपनी ओर नहीं खींचती । गाँव की गोधूलि बेला का भी अपना महत्त्व होता है।

शाम को गाऐं जब रंभाती हुई घर की ओर दौड़ती हैं। तो सूर्य की लाल किरणें गोधूलि में धुंधली दिखाई पड़ने लगती हैं। देखते देखते सारा गांव अन्धकार में डूब जाता है तथा घर-घर में दीये जल उठते हैं। पक्षियों की नाना प्रकार की ध्वनियां भी बहुत कर्ण प्रिय होती हैं। कहीं कोयल की कुहू कुहू तो कहीं मोर की ‘केका’ सुनने को मिलती है। सुबह से शाम तक सारा गाँव सुन्दर दृश्यों में हूवा रहता है।

 Essay on Village Life
गांव का जीवन

जब गाँव में पहली बूंदा-बांदी होती है तो गाँव की मिट्टी सौंधी खुशबू से भर उठती है । वहाँ की ठण्डी हवा की अलग मस्ती होती है। वह सबके हृदय में नवीन प्राणों का संचार करती है। गाँव के पनघटों की अपनी सुन्दरता होती है। नई दुल्हनें जब घघरा छलकाती पनघट से चलती हैं। तो उनके साथ सुन्दरता भी छलकती जाती हैं। उनकी अल्हड़ चाल, रसभरी बातें किसके मन को नहीं मोहती। गाँव का किसान कन्धे पर हल रख कर जब बैलों को हकालाते खेत की ओर चलता है । तो साक्षात् हलधर का रूप आंखों के सामने आ जाता है।

हमारे देश के प्राण गाँव ही हैं। इसी गाँव में खून पसीना एक करने वाला, मेहनत का राजा किसान रहता है। जो अन्नदाता कहलाता है । वह खुद को जलाकर दूसरों का वरदान सिद्ध होता है। कमा कमाकर दूसरों को खिलाता है। भारतीय गाँव स्वर्ग की झाँकी प्रदर्शित करते थे । सौन्दर्य समृद्धि और वैभव से परिपूर्ण थे। अंग्रेजों ने गाँवों का शोषण कर उन्हें जर्जर बना दिया। अब तो गाँवों में न कला है न समृद्धि हैं। गाँव के रहने वाले नर के रूप में कंकाल है न वस्त्र न भोजन । आज के गाँव के जीवन में घोर अज्ञानता का अन्धकार छाया हुआ है। लोग , निरक्षर हैं। नाना प्रकार की दूषित परम्पराओं और रूढ़ियों से चिपके हुए हैं।

 Essay on Village Life
गांव का जीवन

वहाँ स्वास्थ्य है ही नहीं, चारों बोर गन्दगी का साम्राज्य छाया हुआ है। गरी मैं तो लोगों की कमर ही तोड़ दी है। न खाने को भोजन, न पहनने को वस्त्र ।भारत माँवों का देश है । गाँवों की उन्नति ही देश की उन्नति होगी। निरन्तर प्रयत्न करने के बाद भी शहरों की तुलना में गाँव पिछड़े हुए हैं। समस्या ग्रस्त हैं । सबसे पहले गाँवों में शिक्षा का प्रचार हो । गाँव-गाँव में स्कूल हो, र पढ़ लिखकर दायित्वों को समझे, समस्याओं से जूझं, तथा स्वास्थ्य और समृद्धि प के लिए प्रयत्न करें।

आज गाँव में औद्योगीकरण के कारण वहाँ के उद्योग समाप्त हो गये है। उन्हें पुनुरुज्जीवित करने की आवश्यकता है। औद्योगीकरण ने गाँव की कला और छोटे उद्योगों को नष्ट कर दिया है। परिणाम में बेकारी और बेरोजगारी ने गाँवों को पेर रखा है। कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिलने से ही गाँवों की खुशहाली नोट सकती है। देश का प्रमुख उद्योग कृषि है। आज कृषि को राष्ट्रीय स्तर पर जितना महत्त्व मिलना चाहिए। नहीं मिल पा रहा है। खेती के विस्तार से ही देश अर्थ- व्यवस्था में सुधार होगा । गाँवों में समृद्धि आएगी । गाँवों के कृषकों को जागृत और प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। ताकि वे नये ढंग से खेती कर उत्पादन को बढ़ाव और देश की अर्थव्यवस्था को शक्ति प्रदान करें। इस मुख्य स्रोत को बलशानी बनाने की आवश्यकता है। आज तो किसान पूर्ण रूप से शहरों पर आश्रित हैं, उन्हें स्वावलम्बी बनाने की आवश्यकता है ।

गाँवों की उन्नति के लिए सहकारी संघ की स्थापना होनी चाहिए। ता गाँव में उत्पादित वस्तुएँ उचित दामों पर बिक सकें और ग्रामीणों को उनक उत्पादित वस्तुओं का सही मूल्य मिल सके। इससे जर्जर गाँवों की स्थिति में सुधार होगा और वहाँ समृद्धि देखने को मिलेगी । इससे व्यापारियों की लूट से वे अपने को बचा सकेंगे । आज की स्थिति में किसान जरूर कमाते हैं, पर उन्हें अपनी उत्पादित वस्तुओं का दाम नहीं मिल पाता । व्यापारी दलाली करके उनकी वस्तुओं पर मन चाहा लाभ कमा लेते हैं। गाँवों का सामाजिक और सांस्कृतिक ढाँचा ही चरमरा उठा है। अभी भी गाँवों में बाल-विवाह, अनमेल विवाह, छुआछूत, मादकद्रव्यों का सेवन, जुआ और आपसी कलह की भीषण समस्याएँ है। इन कुरीतियों को वहाँ समाप्त करने की आवश्यकता है।

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औद्योगीकरण ने गाँवों की संस्कृति को भी चौपट कर दिया है, वहाँ भी शहरी फैशन और तड़क भड़क का प्रवेश हो चुका है, सादगी और ऊंचे विचार खतम हो गए हैं। सदाचार और नैतिकता मर चुकी है। वहाँ के सांस्कृतिक जीवन को भी ऊपर उठाने की आवश्यकता है। गाँव के लोग शहर की ओर भागने लगे हैं। यह तभी बन्द होगा; जब गाँवों में समृद्धि आएगी ।

शिक्षा के साथ प्रौढ़ शिक्षा का प्रचार भी होना चाहिए ताकि गाँव जल्दी से जल्दी जागृत होकर अधिकार और कर्तव्य को पहिचानने तथा सुख समृद्धि की ओर बढ़ें। गाँवों का सर्वांगीण विकास ही देश का विकास है, इसलिए गाँवों को सामा- जिक, राजनीतिक सांस्कृतिक, और आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बनाने की आवश्यकता है । नव विकास की किरणें पहुँचाकर ही हम गाँवों को प्रकाशित कर उन्हें समृद्धि- शाली बना सकेंगे । गाँधी के ग्राम राज्य को हमें साकार करना होगा। गाँवों की उन्नति ही देश की उन्नति है ।