आदर्श छात्र पर निबंध। Essay On Ideal Student

Essay On Ideal Studentआदर्श छात्र पर निबंध

Essay On Ideal Student: छात्र जीवन (student Life) व्यक्ति के जीवन का मूलाधार (perineum) है। यह जीवन की नींव (foundation of life) है, इसी पर जीवन की भव्य (grandeur of life) अट्टालिका खड़ी होती है। यदि यह बुनियाद (foundation) पक्की न हुई, तो जीवन अट्टालिका (Life Attic) धराशायी हो जाती है। यदि बालकों का छात्र जीवन (student Life) नियम संयम में बीतता है तो वह आगे चलकर एक सुयोग्य नागरिक (eligible citizen) बनता है ।

जो छात्र गुरु, माता-पिता की आज्ञा मानते हुए उनके बताए रास्ते पर चलता है। निश्चय ही उसे जीवन में सफलता मिलती है। बड़ों का मार्ग ही सच्चा मार्ग होता है। महाजनो येन गतः स पथा । कहा जाता है, होनहार विरवान के होत चीकने पात होने वाला पौधा प्रारम्भ से ही चिकना दिखता है । ठीक उसी तरह होनहार छात्रों में जीवन के प्रारम्भ से हो सदगुण दिखाई पड़ते हैं।

आदर्श छात्र पर निबंध (Essay On Ideal Student)

बाल्य जीवन के विश्व को यदि ठीक आर्द्रता, भूमि बोर उर्वरता मिली है तो वह निश्चय ही एक विशाल छायादार और फलदार वृक्ष बनता है। छात्र जीवन ही व्यक्ति को बनाने की भूमि है। आज का छात्र कल का नागरिक बनता है। वह नागरिकता के सारे गुणों को छात्र जीवन में ही प्राप्त करता है। गुण ही मनुष्य को उच्च पद प्रदान करते हैं। विद्या को गुणों की खान कहते हैं। छात्र जीवन ही विद्यार्जन का समय है।

Essay for Ideal Student
आदर्श छात्र पर निबंध

इस जीवन में जो सावधानी से विद्या प्राप्त करते हैं वे ही ज्ञानवान और गुणवान बनते हैं। विद्या, कठिन तपस्या से प्राप्त होती तपस्या है, इसलिए छात्र जीवन की तपस्याकाल कहते हैं। छात्र, इस जोवन में कठोर कर अमूल्य गुणों को प्राप्त करता है। शरीर और मस्तिष्क का विकास करता है। मनुष्य और पशु में सारे सामान्य गुण बराबर होते हैं । विद्या या ज्ञान ही दोनों के बीच विभाजक रेखा है। इसी कारण मानव जीवन में छात्र जीवन का बड़ा महत्व है। छात्र में अनेक गुण होते हैं। वे ही छात्र को मनुष्य बनाते हैं।

छात्र का प्रधान गुण विनम्रता (main quality of student is humility)

छात्र का प्रधान गुण विनम्रता है। विनम्र छात्र ही ज्ञान प्राप्त करने में सफल होता है, विनम्र छात्र ही गुरु का प्रेम पात्र होता है और गुरु से उचित ज्ञान प्रदान करते हैं । उद्दण्ड छात्र कभी भी ज्ञान नहीं प्राप्त कर सकता। कड़वी भाषा भी ज्ञान प्राप्त करने के मार्ग पर एक महान बाधा है। छात्र विद्या प्राप्त करता है और विद्या से अपने आप हृदय में विनय भावना को जन्म मिलता है तथा विनय से ही व्यक्ति महत्त्व शाली बनता है। विद्या, विनय से ही शोभा पाती है। विनय ही छात्र जीवन का श्रेष्ठतम गुण है, वह मानव जीवन का सुन्दर आभूषण है। यदि हम ज्ञानी और विद्वान बनना चाहते हैं तो हमें अपने जीवन में विनय के साथ सेवा और जिज्ञासा को स्थान देना पड़ेगा । अतएव एक आदर्श छात्र के लिए विनयी होना परमावश्यक है ।

अनुशासन ही लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण (Discipline is the main reason for popularity)

अनुशासनप्रियता आदर्श छात्र अनुशासन प्रिय होता है। अनुशासन ही लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण है । जो छात्र अनुशासन प्रिय होगा। उसे गुरु वर्ग और छात्र वर्ग श्रद्धा की दृष्टि से देखता है जो अनुशासन हीन होता है। वह तो प्रिय नहीं होता और लोग उसे पसन्द भी नहीं करते अनुशासन हीनता, व्यक्ति से पतन का सर्वाधिक प्रमुख कारण होता है। अनुशासन हीन छात्र का न तो मानसिक विकास होता है और न विद्या प्राप्त कर वह गुणवान ही बनता है। अपना सारा समय उद्दण्डता में व्यतीत कर देता है। शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन का बड़ा महत्त्व है विनयी और विद्या व्यसनी छात्र ही अनुशासन प्रिय होता है। यदि छात्र छात्र जीवन में अनुशासन का अभ्यास करता है । तो वह अपने मानव जीवन में सफल होता है जो ठीक रास्ते पर चलेगा। उसके पैरों पर कांटा क्यों गड़ेगा। अनुशासन का मार्ग ही निष्कंटक होता है।

Essay for Ideal Student
आदर्श छात्र पर निबंध

श्रद्धा करना, छात्र की एक बड़ी विशेषता है। वह अपने बड़ों और गुणवान व्यक्तियों के प्रति हृदय में चढा रखता है। तभी तो कहा है कि श्रद्धावां लभते ज्ञानम्’ श्रद्धा रखने वाले को ही ज्ञान मिलता है। श्रद्धा के कारण एकलव्य ने धनुर्विद्या में प्रवीणता अर्जित की थी। द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति उसके लिए लागि सिद्ध हुई। बाज तो बढ़ा के स्थान पर छात्र गुरुओं को रान होने के कारण गुरु ज्ञान और के प्रति सन्देह करते हैं। इसी कारण आज के छात्रों का उचित बौद्धिक विकास नहीं हो पाता ।

श्रद्धा के बिना ज्ञान की प्राप्ति है। छात्रा के साम अदा की भावना होती है। ये दो गुण छात्र के ज्ञान हार की गरते हैं। आदर्श छात्र अपने गुरु और गुरुजनों पर पढ़ा करते हैं, जितने और ब छात्र हो गये हैं। वे हमेशा गुरुओं के प्रति श्रद्धाभाव रखते थे। तथा उनके परणी के पास जिज्ञासु बनकर बैठते थे। तभी उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया तथा जीवन गर्म को समझा। गुरु वशिष्ठ के चरणों के नीचे बैठकर ही राम ने रामत्व को पाया मा तथा संदीपति के चरणों नीचे सिर झुकाकर श्रीकृष्ण योगीराज बने महाभारत काल में युग पुरुष के रूप में पूजित हुए थे।

छात्र जीवन की सफलता के मूल मन्त्र (Basic mantras for success in student life)

संयम नियम से प्रेम करने वाला संयम और नियम, छात्र जीवन की सफलता के मूल मन्त्र हैं। इन्द्रियों को वश में रखना संयम कहलाता है । संयमी छात्र कभी भी जीवन में असफल नहीं होता । संयम से बुरी इच्छाओं पर विजय मिलती है। जो बुरी इच्छाओं को जीत लेता है वह जीवन में कभी भी असफल नहीं होता । इसी प्रकार आदर्श छात्र अपने जीवन में नियमों का पालन करता है। नियम पूर्वक काम करना भी जीवन में सफलता का प्रतीक है। समय पर काम करना, नियम पालन कहलाता है। नियम पूर्वक काम करने से आप ही आप सारे काम सिद्ध होते हैं ।

सद्संगति, पुस्तकीय ज्ञान से बढ़कर होती है। इसी कारण एक आदर्श छात्र हमेशा उत्तम लोगों का साथ करता है। यदि मनुष्य दुष्ट संगति करता है, जो जीवन बुराइयों का घर बन जाता है। बुरी संगति से बचने के लिए सद्संगति ही एक अमोघ उपाय है। उससे ज्ञान भी मिलता है । आज कल के छात्र सद्संगति के स्थान पर कुसंगति अधिक करते हैं। सिनेमा देखते हैं। बुरे लोगों के बीच बैठकर मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं। सद्संगति को छात्र के विकास की एक सीढ़ी समझना चाहिए। उस पर पैर रखकर छात्र सफलता के उच्च शिखर पर चढ़ सकता है ।

स्वाध्यायी और परिश्रमी-परिश्रम, सफलता की कुंजी हैं। श्रम कभी भी व्यर्थ नहीं जाता । श्रम से ही विद्या की प्राप्ति होती है। सुख चाहने वाले को विद्या नहीं मिल सकती । वह तो कठिन श्रम साधना का फल है। विद्यार्थी को सुख नहीं मिल सकता और सुखार्थी को विद्या प्राप्त नहीं हो सकती । ‘विद्यार्थिनः कुतः सुखम’। विद्या के लिए श्रम के साथ स्वाध्याय की आवश्यकता होती है। जो छात्र स्वाध्यायी होता है। उसे ही विद्या प्राप्त होती है। बहुत थोड़े समय के लिए संसार में व्यक्ति आता है। एक-एक क्षण का जीवन में महत्व है। उनका ठीक-ठीक श्रम पूर्वक उपयोग होना चाहिए।

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एक-एक क्षण का सदुपयोग करता है आदर्श छात्र (The ideal student makes good use of every moment)

एक-एक बूंद से घड़ा भरता है, एक एक उपयोग से मनुष्य विद्यावान बनता है। आदर्श छात्र एक-एक क्षण का सदुपयोग करता है। जो छात्र जीवन का लोक उपयोग नहीं करता। वह जीवन में चूक जाता है। इसका यह अर्थ नहीं कि आधुनिक विद्यार्थियों में आदर्श विद्यार्थी के कोई लक्षण नहीं पाए जाते। वह न तो माता पिता का सम्मान करता है, न गुरुजनों का, न गुरुओं का । न उसे जान मर्यादा का भय है न नियम कानून का । ज्ञानार्जन की तो उसे चिन्ता ही नहीं है। किसी तरह परीक्षा पास करना उसका उद्देश्य बन गया है। गाँधीजी ने छात्र के लिए कहा है ‘सादा जीवन उच्च विचार’ पर आज का छात्र इससे कोसों दूर है। आज का छात्र तो माता पिता और गुरुजों का अपमान करने में चूकता नहीं है। विनम्रता, आज्ञापालन और अनुशासन की भावना उसमें है ही नहीं ।

बाज के छात्र जगत की बुराइयों के दूर होने पर ही देश को उत्तम नागरिक मिल सकते हैं। तथा देश का निर्माण हो सकता है, इस ओर देश का ध्यान जाना चाहिए। चारों ओर छात्र जगत में अनुशासन हीनता और अराजकता व्याप्त है, अ दूर करने का प्रयत्न होना चाहिए । आदर्श छात्र ही देश की आधार शिला बन सकते हैं और देश को ऊपर उठा सकते हैं । उपर्युक्त गुणों को ग्रहण करके ही छात्र आदा विद्यार्थी बन सकता है।

FAQ

Q. आदर्श छात्र को कैसा जीवन जीना चाहिए?

Ans. ईमानदार और भ्रष्टाचार मुक्त जीवन का निर्वाह करना।।

Q. आदर्श छात्र दूसरों के लिए क्या कर सकते हैं?

Ans. दूसरों के लिए आदर्शवान बनना। पढ़ते हुए कक्षा में आगे बढ़ना।।

Q. आदर्श छात्र को खुद को फोकस रखने के लिए क्या करना चाहिए?

Ans. खूब परिश्रम करना। जीवन में एक लक्ष्य बनाना और उसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक ज्ञान और अनुभव प्राप्त करना।

Q. आदर्श छात्र को अपने काम के प्रति ईमानदार होना चाहिए?

Ans. निरंतर प्रयत्नशील रहते हुए सबसे बढिया काम करना। नैतिक मूल्यों को ग्रहण करना। ।