मुंशी प्रेमचन्द पर निबंध | Essay on Munshi Premchand

Essay on Munshi Premchandमुंशी प्रेमचन्द पर निबंध

Essay on Munshi Premchand: मैंने हिन्दी के अनेक लेखकों के निबन्ध, कहानियाँ, उपन्यास तथा नाटक (Essays, stories, novels and plays) आदि पढ़े हैं। अनेक ने मुझे प्रभावित किया है, परन्तु जितना प्रभावित मुझे प्रेमचन्द (Premchand) जी ने किया है, उतना अन्य किसी ने नहीं। प्रेमचन्द (Premchand) जी ही मेरे प्रिय लेखक, प्रिय साहित्यकार (litterateur) हैं।

Essay on Munshi Premchand

प्रेमचन्द का जन्म (Birth of Munshi Premchand)

प्रेमचन्द जी का जन्म सन् 1880 में काशी के पास लमही नामक गाँव में एक निर्धन परिवार में हुआ था। आर्थिक कठिनाइयों के कारण ये ढंग से पढ़ नहीं पाए। बचपन में ही माता की मृत्यु हो गई थी। सौतेली माँ का प्रेमचन्द जी के प्रति कठोर व्यवहार था। पिता की मृत्यु के बाद घर का सारा बोझ प्रेमचन्द जी पर ही आ पड़ा था।

Essay on Munshi Premchand
प्रेमचन्द्र

शिवरानी नामक बाल विधवा से विवाह (Munshi Premchand’s Wife)

इनकी पहली शादी सफल नहीं रही। बाद में इन्होंने शिवरानी नामक बाल विधवा से विवाह किया। शुरू किया। ‘सोजे वतन’ कहानी संग्रह के जब्त होने के बाद इन्होने प्रेमचन्द प्रेमचन्द जी का असली नाम धनपतराय था। शुरू में इन्होंने उर्दू में लिखना नाम से हिन्दी में लिखना शुरू किया। मेरे प्रिय लेखक प्रेमचन्द के जीवन में सदा आर्थिक कठिनाइयाँ रही।

रचनाओं में गरीबी का यर्थाथ चित्रण

यही कारण है कि इनकी प्रत्येक रचना के मूल में आर्थिक समस्याएँ हैं। सेवा सदन गबन, कर्म-भूमि, निर्मला, गोदान सब के मूल में गरीबी है। इन्होंने गरीबी को निकट से देखा था। अतः इनकी रचनाओं में गरीबी का यर्थाथ चित्रण है काल्पनिक नहीं। प्रेमचन्द जी का साहित्य वास्तव में अपने समय का प्रतिबिम्ब है। इनके साहित्य में यथार्थ के साथ-साथ आदर्श के दर्शन होते है। इनकी रचनाओं में निम्न और मध्य श्रेणी के पात्रों की प्रधानता है। इनके चित्रण में इन्हें अपार सफलता मिली है। प्रेमचन्द जी के पात्रों में मानवीय दुर्बलताएँ है परन्तु ये दुर्बलताएँ ही तो मानव को मानव बनाती है।

Essay on Munshi Premchand
प्रेमचन्द्र

प्रेमचन्द जी के साहित्य में ग्रामीण जनता का चित्रण है जो अंधविश्वास और अज्ञान में जकड़ी हैं। प्रेमचन्द जी सच्चे अर्थो में गाँवों के, किसानों के, मजदूरों के लेखक थे। प्रेमचन्द जी को स्त्री और पुरुष दोनों प्रकार के पात्रों के चित्रण में पूर्ण सफलतामिली है। इनके साहित्य में समाज के प्रत्येक वर्ग के पात्रों का चरित्र अपने स्वाभाविक रूप में उभरा है।

प्रेमचन्द्र ने हिन्दी को हिन्दी रूप में अपनाया

भाषा की दृष्टि से प्रेमचन्द जी महान कलाकार थे। इन्होंने सरल हिन्दी में अपनी रचना की हैं। इन्होंने हिन्दी को हिन्दी रूप में अपनाया है। यही कारण है कि इनकी भाषा आम बोल-चाल की हैं। इन्होंने उर्दू के सरल शब्दों का प्रयोग किया है।

मदर टेरेसा पर निबंध | Essay on Mother Teresa

मुहावरों और कहावतों का प्रयोग भी इन्होंने खूब किया है जिससे इनकी भाषा आम बोल-चाल की है। मुहावरों और कहावतों का प्रयोग भी इन्होंने खूब किया है, जिससे इनकी भाषा सशक्त बन गई है। उपन्यासों के अतिरिक्त प्रेमचन्द जी ने 300 के लगभग कहानियाँ लिखी है। इनकी प्रत्येक कहानी अपने आप में अनूठी है तथा हिन्दी कहानियों में अपना विशेष स्थान रखती है। सन् 1937 में इनका निधन हुआ/ अपनी रचनाओं के रूप में प्रेमचन्द जी आज भी हमारे बीच में है और सदा रहेंगे।

FAQ

Q. मुंशी प्रेमचंद के बचपन का नाम क्या था?

Ans. मुंशी प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपत राय था।।

Q. मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब हुआ था?

Ans. मुंशी प्रेमचंद का जन्म साल 1880 में 31 जुलाई को वाराणसी के एक छोटे से गांव लमही में हुआ था।

Q. मुंशी प्रेमचंद अपने अंतिम दिनों में किसी चीज से जुड़े थे?

Ans. मुंशी प्रेमचंद अपने अंतिम दिनों में भी वे साहित्य से ही जुड़े रहे।।

Q. मुंशी प्रेमचंद ने अपना पहला साहित्यिक काम कहां शुरू किया था?

Ans. मुंशी प्रेमचंद ने अपना पहला साहित्यिक काम गोरखपुर से उर्दू में शुरू किया था।।

Q. मुंशी प्रेमचंद की पहली रचना कौन सी थी?

Ans. मुंशी प्रेमचंद की पहली रचना “सोज-ए-वतन” थी।।