गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध | Essay On Goswami Tulsidas

गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध

Essay On Goswami Tulsidas: गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) हिन्दी संसार के अत्यन्त लोक प्रिय कवि हैं। वे भारतीय जनमानस के एक मात्र सम्राट हैं। उन्होंने साहित्य और धर्म को मिलाकर लोक मंगल की साधना की है।

जिस समय हमारा देश राजनीतिक शोषण, विषमता अनाचार और आडम्बर सामाजिक दूषित परम्पराओं से घिरा हुआ था। उसी समय भारतीय वैष्णव साहित्यकारों ने जन जीवन में नैतिक आदर्शों की स्थापना की गोस्वामी तुलसीदास उन्हीं वैष्णव साहित्यकारों में से एक थे। उन्होंने जन मानस को भक्ति की ओर उन्मुख किया। मुगल काल में गोस्वामी तुलसीदास से बढ़ कर और कोई सशक्त कवि नहीं हुआ।

(Essay On Goswami Tulsidas)

गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय

गोस्वामी तुलसीदासजी का प्रामाणिक जीवन वृत नहीं मिलता। बिखरी सामग्री और उनकी रचनाओं के आधार पर उनका जन्म संवत 1554 माना जाता है। वे बांदा जिले के राजापुर गांव में पैदा हुए थे। गोस्वामी तुलसीदासजी के पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था। वे सरयूपारीण ब्राह्मण थे।

Essay On Goswami Tulsidas
गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध

बाल्यावस्था में ही माता-पिता के परलोक वासी होने से उनका बचपन बड़े दुःखों से बीता। बाबा नरहरिदास ने उनका पालन-पोषण किया था। उन्होंने ही उनका ‘राम बोला’ नाम बदलकर तुलसीदास रखा था।

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साधु-संतों के बीच रहने के कारण गोस्वामी तुलसीदासजी का साधु चरित्र था। बड़े होने पर उनका विवाह रत्नावली से हुआ। एक बार वे रत्नावली के प्रेम में डूबकर ससुराल चले गए। रत्नावली ने लज्जावश उनका तिरस्कार किया, वे अपमान बोधकर वहां से चले आए और भगवान राम सेवा में लग गए। पत्नी के तिरस्कार ने ही उन्हें महान भक्त बनाया और राम कथा के अमर गायक का सम्मान दिलाया।

विरागी बनकर तुलसी दास भ्रमण करते रहे। इस भ्रमणशीलता से उनके अनुभवों को बल मिला तथा काव्य प्रतिभा विकसित हुई। उन्होंने चित्रकूट, काशी, अयोध्या आदि स्थानों में रहकर रामकथा का सृजन किया।

तत्कालीन साहित्यकारों से भी उनकी भेंट हुई थी। रहीम, रसखान, मीरा, नन्ददास आदि उनके समकालीन कवि थे। संवत 1680 को गोस्वामी तुलसीदास ने अपना भौतिक शरीर छोड़ा था।

गोस्वामी तुलसीदास ने 37 ग्रन्थों का प्रणयन किया है, जिनमें 12 कृतियां प्रकाशित रूप में मिलती हैं- वैराग्य संदीपति, रामाज्ञा प्रश्न; रामलला नहछू, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, कृष्ण गीतावली, गीतावली, दोहावली, बरवै रामायण हनुमान बाहुक कवितावली, ‘विनय पत्रिका और रामचरित मानस।

इसमें रामचरित मानस उनकी प्रौढ़ कृति है। इसमें कवि की काव्यगत प्रतिभा देखने को मिलती है। रामायण (रामचरित मानस) की पहुंच झोपड़ी से लेकर महल तक है, विद्वान भी उसके रस में डूबते हैं और सामान्य जन भी।

रामकथा के आधार पर गोस्वामी तुलसीदास ने मानवीय मर्यादा की स्थापना की है। रामचरित मानस एक सजीव ग्रंथ है, वह निरन्तर 400 वर्षों से हमें प्रेरित करता आ रहा है। उनकी नैतिकता और दार्शनिकता में डूबते रहे हैं।

इस ग्रंथ में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र का वर्णन है, जो व्यक्ति मात्र के लिए अनुकरणीय है। मानस की प्रायः प्रत्येक चौपाई ‘र‘ से शुरू होती है। वह एक प्रबन्ध काव्य है, उसे उन्होंने दोहा चोपाई शैली में लिखा है।

गोस्वामी तुलसीदास का विश्व को संदेश

गोस्वामी तुलसीदास एक समन्वयवादी कवि थे, उन्होंने धर्म, समाज और राजनीतिक मतभेदों को दूर करते हुए एकता की स्थापना की है, वैमनस्य के स्थान पर सौमनस्य की स्थापना की, अशांति, अराजकता, पापाचार और अनैतिकता को दूर करने की सफल चेष्टा की। इसी समन्यवाद ने उन्हें लोकनायक बनाया और जनता के कण्ठद्वार बन सके।

तुलसी का व्यक्तित्व महान और विशाल है। ये एक साथ कवि भक्त, समाजसुधारक और भारतीय संस्कृति के अनन्य उपासक हैं। उन्होंने रामचरित मानस में जिस राम राज्य की कल्पना की है। उसमें समाज के सारे उन्नत आदर्श निहित हैं।

गोस्वामी तुलसीदास जन कवि हैं। राम के प्रति उनमें अगाध भक्ति है। रामचरित के मान सरोवर में बकर उन्होंने निर्मल बुद्धि पाई है। उनमें इसी कारण विनय भावना पाई जाती है। उन्हें अपने ज्ञान दंभ नहीं, राम कृपा ही उनके जीवन का आधार है।

तुलसीदास जी का ना तो कर्मकाण्ड पर विश्वास था, ना कठोर तपस्या पर भक्ति मार्ग को ही राम प्राप्ति का मार्ग समझते थे, नैतिकता, उनकी भक्ति का आधार थी। धर्म साधना का मार्ग भी रामचरित मानस में एक सुन्दर गृहस्थ जीवन का चित्रण है। उस आदर्श को तुलसी ने घर-घर पहुंचाया है।

Essay On Goswami Tulsidas
गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध

तुलसीदास जी ने ज्ञान को भक्ति से श्रेष्ठ बताया है। ज्ञान मार्ग को उन्होंने कृपाण की धार और भक्ति मार्ग को सबके लिए सरल कहा है। तुलसी की भक्ति के दो पक्ष हैं – 1. नैतिकता, 2. भक्ति। इन दोनों को वे अन्योन्याश्रित मानते हैं।

मानस में नैतिकता की उच्चतम प्रतिष्ठा हैं। अश्लीलता और अनैतिकता कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती। सर्वत्र मर्यादा की स्थापना है, रामचरित मानस एक आचार ग्रंथ है, उसमें सर्वत्र नैतिकता की रक्षा हुई है।

तुलसीदास जी के कथनानुसार आत्म समर्पण से ही राम प्राप्ति सम्भव है। निम्नलिखित पंक्तियों में राम के प्रति उनमें उत्कट भक्ति देखने को मिलती है—

कामिहिं नारि पियारि जिमि। लोमिहि जिय जिमि दाम।

तिमि रघुनाथ निरन्तर। प्रिय लागहु मोहि राम।

तुलसी की भक्ति की एक विशेषता दैन्य भी है-

तू दयालु दीन हौं तू दसी, हौं भिखारी।

हौं प्रसिद्ध पात की, तू पाप मुंजहारी ॥

तुलसी की भक्ति पद्धति में सदाचार, कर्तव्य पालन और परहित भावना का प्रमुख स्थान है। वे पर पीड़ा को ही अधर्म मानते थे। वे प्रेम, विनय, शरणागति और दैन्य को भक्ति के प्रमुख सोपान मानते थे। सात्विकता, उसकी भक्ति पद्धति की आत्मा है। वे भगवान से प्रेम चाहते हैं, ऐश्वर्य नहीं।

रामचरित मानस एक व्यवहार ग्रंथ हैं, उसमें मानव जीवन के अनेक रूप देखने को मिलते हैं। राजा प्रजा, सभ्य असभ्य, स्त्री-पुरुष, ऊंच-नीच, भाई-भाई, पिता-पुत्र, सास-ससुर के मधुर सम्बन्धों को उन्होंने बड़े अच्छे ढंग से चित्रित किया है। नारी की उच्च स्थिति को भी उन्होंने रामचरित मानस में स्थापित किया है।

निष्कर्ष (Conclusion)

तुलसी का ब्रज और अरबी भाषाओं पर बड़ा अधिकार था। उनके ग्रंथों में उस समय की प्रचलित सारी शैलियां देखने को मिलती है। रामचरित मानस में दोहा चौपाई शैली, विनय पत्रिका और गीतावली में गीति शैली, दोहावली में दोहा शैली और कवितावली में कवित्त शैली देखने को मिलती है।

अलंकारों की छटा भी काव्यों में देखते बनती हैं। इसकी दृष्टि से भी काव्यों में रसमयता है, सारे रसों के प्रयोग स्थान-स्थान पर हुए हैं। तुलसी लोकनायक और युग प्रवर्तक कवि हैं, भाव, भाषा की दृष्टि से उसके ग्रंथ अन्यतम हैं।

FAQ

Q. तुलसीदास जी का जन्म कब हुआ था?
Ans. तुलसीदास जी का जन्म चित्रकूट जिलेके राजापुर में संवत 1554 को हुआ था।

Q. तुलसीदास की 12 रचनाएं कौन कौन सी है?
Ans. तुलसीदास की 12 रचनाएं वैराग्य संदीपति, रामाज्ञा प्रश्न; रामलला नहछू, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, कृष्ण गीतावली, गीतावली, दोहावली, बरवै रामायण हनुमान बाहुक कवितावली, ‘विनय पत्रिका और रामचरित मानस हैं।

Q. तुलसीदास जी कितने वर्ष जीवित रहे?
Ans. तुलसीदास जी करीब 126 साल तक जीवित रहे थे।

Q. तुलसीदास जी का निधन कब हुआ?
Ans. तुलसीदास जी का निधन 1680 में हुआ था।