दशहरा पर निबंध | Essay on Dussehra

दशहरा पर निबंध

Essay on Dussehra: भारतवर्ष, त्योहारों का देश है। यहां के ऋषि मुनि सदा आनन्द की खोज में रहे हैं। यह उसी खोज की एक उपलब्धि है। इन त्योहारों के साथ वही आनन्द जुड़ा हुआ है। विजयादशमी (Dussehra) भी एक ऐसा ही त्योहार है। वैसे यह क्षत्रियों का त्योहार है, पर इसे भारत की समस्त जातियां बड़ी धूमधाम के साथ मनाती हैं।

(Essay on Dussehra)

यह त्योहार प्रतिवर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन देवासुर संग्राम में देव विजयी हुए थे, राक्षसों की पराजय हुई थी, इसलिए इस त्योहार विजयादशमी हैं (Essay on Dussehra in Hindi)

Essay on Dussehra
दशहरा पर निबंध

प्रस्तावना (Introduction)

विजयादशमी के दिन कहीं देवी दुर्गा तो कहीं भगवान राम की पूजा होती है। क्षत्रिय जाति इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। युद्धादि के लिए यह तिथि शुभ मानी जाती है। आज भी यह परम्परा किसी ना किसी रूप में जीवित है।

शरद काल का यह प्रमुख पर्व है। प्रकृति की रमणीयता इस समय देखते बनती है। आकाश साफ हो जाता है। सरोवरों में कमलों का दल खिल उठता है और हंसों का संतरण मन को मोह लेता है। चारों ओर मनोरम हरीतिमा व्याप्त रहती है और भवरें फूलों पर गुंजार करते रहते हैं। ऐसी मनोरमता के भीतर विजयादशमी को पाकर लोगों का मन उल्लासित हो उठता है। चारों ओर रामलीसा की धूम मच जाती है।

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विजयादशमी मनाने के अनेक धार्मिक, सामाजिक और ऐतिहासिक कारण है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। इसी खुशी में सारे भारत में राम की विजय स्मृति में यह त्योहार मनाया जाता है।

खुशी के परिणाम स्वरूप चारों ओर रामलीला का आयोजन होता है। ताकि लोग राम विजय की मनोरमता को अपनी आंखों से देख सकें। इन लीलाओं में राम के जीवन की झलकियां दिखाई जाती हैं। रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतले भी जलाए जाते हैं। यह पर्व दानवता का नाश कर मानवता का सन्देश देता है। इसी घटना के कारण राम, पुरुष से पुरुषोत्तम और नर से नारायण बन जाते हैं।

इस दिन शक्ति पूजक दुर्गा की पूजा भी करते हैं। पुराणकाल में महिषासुर नामक एक राक्षस था, जो अत्याचारी था। उसके अत्याचारों से मनुष्य और देवता त्रस्त हो उठे। सभी ने मिलकर महाशक्ति से विनती की। भक्तों को विनय से प्रभावित होकर दुर्गा अवतरित हुईं, उन्होंने महिषासुर के साथ शुम्भ और निशुंभ जैसे दुर्दमनीय राक्षसों का वध किया। देवीशक्ति की विजय को खुशी में यह पर्व मनाया जाता है, ऐसी भी लोगों की धारणा है।

दशहरा शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से दशहरा पर्व प्रारम्भ हो जाता है, भक्त दुर्गापाठ करते हैं। इसे नवरात्रि भी कहते हैं। प्रतिपदा से नवमी तक दुर्गा पूजा होती है तथा शाक्तों के घर में शप्तशती का पाठ होता है। लोग बड़ी निष्ठा के साथ नवरात्रि का उपवास करते हैं। नवें दिन होमादि के साथ नवरात्र समाप्त होता है।

क्यों होती है शमी वृक्ष की पूजा?

इस पर्व के पीछे एक पौराणिक भी जुड़ी हुई है। इक्ष्वाकु वंश के एक राजा थे। उनके पुत्र नाम रघु था। रघु बड़े प्रतापी थे, उन्हीं के नाम से कुल का नाम रघुवंश पड़ा। रघु बड़े दानशील थे, उन्होंने विश्वजीत यज्ञ में कोश का सारा धन विद्वान ब्राह्मणों और आचायों में बांट दिया। उसी समय वरतंतु के शिष्य कौत्स रघु के पास पहुंचे, ताकि उनसे अर्थ प्राप्तकर वे गुरु दक्षिणा चुका सकें।

गुरुदक्षिणा में उन्होंने 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मांगी। रघु का खजाना तो खाली हो गया था। वे कहां से धन लाते, थोड़ी देर तक वे चिन्ता में पड़ गए। उन्होंने तत्काल कुबेर पर आक्रमण किया, कुबेर ने शमी वृक्ष को हिलाकर अनगिनती स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा की, रघु ने सारी मुद्राएं कौत्स को सादर अर्पित कीं। इस विजय की याद में भी यह विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है तथा पर्व के दिन शमी वृक्ष की पूजा होती है।

बिहार बंगाल और उड़ीसा में इस पर्व को दुर्गापूजा के नाम से मनाते हैं। ऐसा कहा जाता है, कि राम ने रावण को हराने के लिए दुर्गा से शक्ति प्राप्त की थी। उन्होंने दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए 101 नील कमल उनके चरणों पर अर्पित किए थे। पर, हनुमान जी उनमें से 100 कमल ही एकत्र कर पाये थे। एक नील कमल हजार प्रयत्न करने पर भी नहीं मिल सका था। वे थककर राम के पास लौट आए।

अब क्या करें पूजा कैसे हो ? राम ने कहा चिन्ता की बात नहीं, मुझे भी तो लोग राजीव लोचन कहते हैं। एक इनमें से अर्पित कर दी जाएगी। ऐसा कहकर उन्होंने 100 फूल देवी के चरणों पर चढ़ाए। अन्तिम के लिए उन्होंने तीर से ज्यों ही आंख निकालने की कोशिश की देवी प्रकट हुईं। उन्होंने राम को अपनी शक्ति प्रदान की और रावण विजय का आर्शीवाद भी दिया। भगवान राम उस दिन के युद्ध में विजयी हुए। रावण मारा गया। इसी के उपलक्ष में दुर्गापूजा होती है, कहा जाता है।

यह विजयादशमी का उत्सव हमें धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है, धर्म ही जीत का कारण बन जाता है। राम धर्म के मार्ग पर चलने से विजयी हुए और रावण अधर्म आचरण करने वाला था। अतएव भगवान राम के हाथों मारा गया।

हमारा देश विभिन्नताओं का देश है। यहां अनेक धर्म, भाषा, जाति और सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। सब लोग उस विभिन्नता के भीतर भी एक हैं। यह पर्व सारी भिन्नताओं को एकता में समेट लेता है। सब के सब इसे धूमधाम के साथ मनाते हैं।

Essay on Dussehra
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यह पर्व जागरण और पवित्रता का भी संदेश देता है। यह आवश्यक है कि अत्याचार और दुराचार को समाप्त करने के लिए सामाजिक संगठन और एकता की आवश्यकता होती है। भगवान राम ने इसी संगठन और एकता के बल पर दुराचारी और अत्याचारियों को समाप्त किया।

विजयादशमी वीर भावों का संदेश देती है। दुष्टों को पराजित करने के लिए शक्ति की भी आवश्यकता होती है। उसके अभाव में दुष्टों को पराजित करना कठिन हो जाता है। इस पर्व के द्वारा राम की निष्ठा, पवित्रता, संगठन शक्ति का संदेश में मिलता है। गुण विजय के कारण बनते हैं।

विजयदशमी से जुड़ी सामाजिक कुरीतियां

इस पर्व के साथ कुछ दूषित परम्पराएं भी जुड़ी हुई हैं। लोग देवी को प्रसन्न करने लिए जानवरों की बलि देते हैं। मां, बकरा, भैंस से नहीं, भक्ति से प्रसन्न होती है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने इस दूषित प्रथा का अन्त किया था। उनके स्थान पर नारियल और कुम्हड़ा आदि बलि के लिए रखे गए। निश्चय ही निरीह पशुओं का वध अनुचित हैं।

उपसंहार (Conclusion)

हम राम के आदर्शों पर चलकर ही रावण जैसी बुराई को जीत सकते हैं, ईर्ष्या, द्वेष कलह, ये वृत्तियां मानव को नाश की ओर ले जाती हैं। हमें, न्याय, त्याग, प्रेम, अहिंसा, सत्य, सहयोग सहानुभूति बादि मानवीय मूल्यों को ग्रहण करना चाहिए, तभी हम एक अच्छा मनुष्य बन सकते हैं। यह पर्व हमें इसी दिशा में आगे बढ़ाता है तथा सद्वृत्तियों की ओर प्रेरित करता है।