Budhwar Vrat Katha, Puja Vidhi aur Aarti: ग्रह शांति तथा सर्व-सुखों की इच्छा रखने वालों को बुधवार का व्रत करना चाहिए। इस व्रत में एक ही बार भोजन करना चाहिए। इस व्रत के समय हरी वस्तुओं का उपयोग करना श्रेष्ठ है। इसी रंग की वस्तुओं का दान भी देना शुभ होता है।
बुधवार व्रत की पूजा विधि (Budhwar Vrat Puja Vidhi)
व्रत के अंत में शंकर जी की पूजा, धूप, बेल-पत्र आदि से करनी चाहिए। साथ ही बुधवार की कथा सुनकर आरती के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिए। बीच में ही नहीं जाना चाहिए।
संकल्प लेकर बुधवार के व्रत करने चाहिए तथा व्रत की पूर्णता के लिए अंत में व्रत का उजमन करना आवश्यक होता है। इसके लिए बुधाष्टमी के दिन प्रातः काल उठकर गंगादि किसी पवित्र तीर्थ में स्नान करके पुण्याहवचान और रक्षाबंधन करें।

तत्पश्चात उच्चारण करें कि अमुक फल की प्राप्ति हेतु हमने बुधवार का व्रत किया था, अब इसका उजमत कर रहे हैं। इसके पश्चात बुधवार से संबंधित देवता की पूजा आदि का उजमन कर अंतिम रूप प्रदान कर, पुण्य के भागी बनें।
बुधवार व्रत की कथा-1 (Budhwar Vrat Katha)
एक बनिया दूर-दूर तक वाणिज्य व्यापार करने जाया करता था। एक दिन बनिये की गैर-हाजिरी में बुध के दिन उसकी स्त्री के गर्भ से एक सुन्दर बालक पैदा हुआ। बनिये को विदेश में फिरते हुए बारह वर्ष बीत गये। इसी बीच उसने बहुत धन पैदा किया।
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अपने परिश्रम से पैदा की हुई सम्पत्ति को गाड़ियों में भरकर वह घर की ओर चला। जब वह अपने गांव के समीप पहुंचा तब एक जगह उसकी गाड़ियां अटक गई। बनिये ने गाड़ी चलाने के लिए यथा-साध्य सब उपाय किये, परन्तु बैल अपनी जगह से तिल भर भी नहीं हटे। अन्त में उसने आसपास के गांवों से बड़े-बड़े पण्डितों को बुलाकर उनसे उपाय पूछा।
पण्डितों ने विचार कर कहा कि यदि बुधवार के दिन का उत्पन्न हुआ कोई बालक गाड़ियों को हाथ लगा दे, तो सम्भव है कि गाड़ियां चल जाए। निदान वह बनिया अपने ही गांव में जाकर स्त्रियों से पूछने लगा। स्त्रियों ने कहा कि जैसा बालक चाहते हो, वैसा तो तुम्हारे ही घर में मौजूद है। उसी को ले जाओ और अपनी गाड़ी चला लो।

स्त्री के कहने से वह अपने घर की ओर चला गया। अपने द्वार पर पहुंचकर उसने देखा कि एक सुन्दर बालक खेल रहा है। उसने बालक से पूछा कि तुम किसके लड़के हो ? उसने उसी का नाम बतला दिया।
तब बनिया बोला कि मैं ही तुम्हार पिता हूं। मेरी गाड़ियां अटक गई हैं, उन्हें चलकर हाथ लगा दो। लड़का तुरन्त पिता के पास चला गया। उसने ज्योंही गाड़ियों में हाथ लगाया, त्योंही गाड़ियां चलने लगीं। घर जाकर बनिये ने बड़ी खुशी मनाई। लड़के के सब संस्कार कराये और बहुत-सा दान-पुण्य किया।
तभी से यह प्रसिद्ध है कि बुधवार का जन्मा हुआ लड़का बड़ा प्रतापी और बुद्धिमान होता है। जो काम पिता से नहीं बन पड़ता, उसे पुत्र पूरा कर देता है। कहा जाता है कि उसी समय से स्त्रियों में बुधवार का व्रत रहने की परिपाटी चली है।
बुधवार व्रत की कथा-2 (Budhwar Vrat Katha)
एक समय एक व्यक्ति अपनी पत्नी को विदा करवाने के लिए अपनी ससुराल गया। वहां पर कुछ दिन रहने के पश्चात सास-ससुर से उसने विदा करने के लिए कहा। किंतु सबने कहा कि आज बुधवार का दिन है, आज के दिन गमन नहीं करते हैं। वह व्यक्ति किसी प्रकार ना माना और हृदयमी करके बुधवार के दिन ही पत्नी को विदा कराकर अपने नगर को चल पड़ा।
मार्ग में उसकी पत्नी को प्यास लगी तो उसने अपने पति से कहा कि मुझे बहुत जोर से प्यास लगी है। तब वह व्यक्ति लोटा लेकर रथ। उतरकर जल लेने चला गया। जैसे ही वह व्यक्ति पानी लेकर अपनी पत्नी के निकट आया तो वह यह देखकर आश्चर्य से चकित रह गया कि ठीक अपनी ही जैसी सूरत तथा वैसी ही वेश-भूषा में एक व्यक्ति उसकी पत्नी के पास रथ में बैठा हुआ है।
उसने क्रोध से कहा कि तू कौन है जो मेरी पत्नी के निकट बैठा हुआ है। दूसरा व्यक्ति बोला- यह मेरी पत्नी है। मैं अभी- अभी इसे ससुराल से विदा कराकर ला रहा हूं। वे दोनों व्यक्ति परस्पर झगड़ने लगे। तभी राजा के सिपाही आकर लोटे वाले व्यक्ति को पकड़ने लगे।
स्त्री से पूछा कि तुम्हारा असली पति कौन-सा है? तब पत्नी शांत ही रही। चूंकि दोनों व्यक्ति एक जैसे थे, अतः उसने सिपाहियों की बात का कोई उत्तर नहीं दिया। वह किसे अपना असली पति कहे।

उधर पत्नी के लिए लोटे में जल लाने वाला व्यक्ति ईश्वर से प्रार्थना करता हुआ बोला- हे परमेश्वर! यह क्या लीला है कि सच्चा झूठा बन रहा है। तभी आकाशवाणी हुई कि हे मूर्ख! आज बुधवार के दिन तुझे गमन नहीं करना चाहिए था। तूने किसी की बात नहीं मानी। यह सब लीला बुधदेव भगवान की है।
तब उस व्यक्ति ने बुधदेव से प्रार्थना की और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी। तब बुधदेव जी अंतर्ध्यान हो गए। वह अपनी स्त्री को लेकर घर आया तथा बुधवार का व्रत वे दोनों पति-पत्नी नियमपूर्वक करने लगे। जो व्यक्ति इस कथा को श्रवण करता तथा सुनाता है उसको बुधवार के दिन यात्रा करने का कोई दोष नहीं लगता है तथा उसको सर्व प्रकार से सुखों की प्राप्ति होती है।
बुधवार की आरती (Budhwar Ki Aarti)
आरती युगलकिशोर की कीजै।
तन मन धन न्योछावर कीजै॥ टेक॥
गौरश्याम मुख निरखत रीझै।
हरि का स्वरूप नयन भरि पीजै॥
रवि शीश कोटि बदन की शोभा।
ताहि निरखि मेरो मन लोभा॥
ओढ़े नील पीत पत सारी।
कुंज बिहारी गिरिवर धारी॥
फूलन की सेज फूलन की माला।
रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला॥
मोर मुकुट मुरली कर सोहे।
नटवर कला देखि मन मोहे॥
कंचनथार कपूर की बाती
हरि आए निर्मल भई छाती॥
आरती करें सकल ब्रज नारी॥
नंदनंदन बृजभान, किशोरी।
परमानन्द स्वामी अविचल जोरी॥