लाल बहादुर शास्त्री पर निबंध | Essay on Lal Bahadur Shastri

Essay on Lal Bahadur Shastri: प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) सच्चे अर्थों में जननेता थे, वे हमेशा जन भावना का ख्याल रखते थे, महान चरित्रवान (great character) और सादगी के अवतार थे। देश के लिए लाल बहादुर शास्त्री का नारा जय जवान जय किसान (Jai jawan jai kisan), यही उनका राष्ट्रीय विचार या शक्ति से जवान देश की रक्षा करने और पोषण देकर किसान देश की सेवा करेंगे।

शास्त्री जी बहुत कम समय तक देश के प्रधानमन्त्री रहे पर इस कम समय भीतर उन्हें भारत पाक युद्ध का सामना किया। उनके नेतृत्व में देश के सैनिकों ने अभूत पूर्व वीरता दिखाई और पाकिस्तान को करारी हार दी, पर रूसी प्रधानमंत्री कोसीगिन के प्रयत्न से युद्ध विराम हुआ और संधि के लिए पाकिस्तान के सदर अयूब और भारत के प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री ताशकन्द में मिले।

Lal Bahadur Shastri
लाल बहादुर शास्त्री

लाल बहादुर शास्त्री पर निबंध (Essay on Lal Bahadur Shastri)

काश्मीर, भारत का अंग है। यह अपूर्व के मानने पर शास्त्री जी ताशकंद वार्ता में शामिल होने गए। जाने के पूर्व वे लोक सभा के विरोधी सदस्यों से भी मिले। उन्होंने यह स्पष्ट कहा कि ताशकन्द वार्ता में काश्मीर का प्रश्न नहीं उठाया जाएगा। वह भारत का अभिन्न अंग है वहाँ देश की सम्पूर्ण प्रभुता, प्रादेशिक अखण्डता को लेकर भी कोई सौदेबाजी नहीं होगी।

2 जनवरी 1965 को शास्त्री जी ताशकन्द वार्ता में शामिल होने चले गए। देश की जनता ने उनको भावभीनी विदाई दी। 3 जनवरी को शास्त्री जी अपने प्रतिनिधि मण्डल के साथ ताशकन्द पहुंचे दो घण्टे पहले वहाँ अयूब पहुँच चुके थे। कोसीगिन भी ताशकन्द में थे। उन्होंने दोनों नेताओं का स्वागत किया। शास्त्रीजी उजबे किसान के साम्यवादी दल के महामन्त्री के निवास स्थान पर ठहरे।

ताशकन्य यात्रा और घोषणा

4 जनवरी, 1965 को लालबहादुर शास्त्री और अयूब के बीच वार्ता प्रारम्भ हुई। दोनों ने युद्धबन्दी और शांति की कामना की। शास्त्रीजी ने प्रस्ताव रखा कि दोनों देशों को लाने में बल प्रयोग का निषेध करें। अयूब ने इस प्रस्ताव के साथ काश्मीर के प्रश्न को जोड़ दिया। उन्होंने कहा काश्मीर की समस्या के हल न होते तक युद्ध से इन्कार नहीं किया जा सकता।

2 जनवरी को यह तय हुआ कि दोनों ने हिन्दुस्तानी में समझ पर बात करेंगे। दोनों देशों की कार्य सुचियां तैयार हुईं, लेकिन दोनों को एक-दूसरे की कार्य सूची पसंद नहीं आई। कोसीगिन ने दोनों देशों के प्रधानों से मिलकर बातचीत की। सफलता के लिए प्रयत्न किया।

Lal Bahadur Shastri
लाल बहादुर शास्त्री

समझौता

6, 7 जनवरी को भी वार्ता किसी मुद्दे पर नहीं पहुंच सकी। 8 जनवरी को स्थिति इतनी बिगड़ गयी कि पाकिस्तान ने युद्ध ना करने के समझौते को अस्वीकार कर दिया। काश्मीर की समस्या का पाकिस्तान ने जोर शोर के साथ सामने रखा।

6 जनवरी को कोसीगिन ने बातचीत की सफलता के लिए जी-तोड़ मेहनत की। 10 जनवरी को ले-देकर समझौते की बात तय हो पाई नौ सूचियों का घोषणा पत्र तैयार हुआ।

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प्रधानमन्त्री अनन्त की ओर

ताशकन्द समझौता तो गया पर पाकिस्तान ने अपनी पुरानी हरकतें नहीं छोड़ी। सीमा अतिक्रमण, घुसपैठिए, गोलाबारियां भारत विरोधी प्रचार और विष वमन आदि भी त्यों के ज्यों विद्यमान हैं।

पाकिस्तान की दृष्टि में ना ताशकन्द समझौते का महत्व है ना संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का। वह कभी अमेरिका-ब्रिटेन के इशारे पर नाचता है तो कभी चीन के। ताशकन्द यात्रा लाल बहादुर की अन्तिम शांति यात्रा थी, वे चाहते थे कि विश्व में शांति कायम हो, शांति की खोज में ही उन्होंने इसी यात्रा में अपनी जिन्दगी की अन्तिम यात्रा समाप्त की। शास्त्री जीन ने 11 जनवरी 1966 में ताशकंद में अंतिम सांस ली। उनकी मौत की गुत्थी आज तक सुलझ नहीं सकी।

शास्त्री जी सच्चे अर्थ में जन नेता थे, देश को उन्होंने ‘जय जवान’ और ‘जय किसान; के नारे दिए थे, उनका विश्वास था देश उन्नति और सुरक्षा इन्हीं दो शक्तियों द्वारा हो सकता है। यद्यपि शास्त्री जी कम समय तक प्रधानमन्त्री के पद पर रहे पर अपने अल्प काल में उन्होंने जो काम किया है, वह न भूतो ना भविष्यति।