Sakat Chauth Vrat Katha: सकट चौथ व्रत के नियम और उपाय, पूजा विधि

Sakat Chauth Vrat Kathaसकट चौथ व्रत के नियम और उपाय, पूजा विधि

Sakat Chauth Vrat Katha: सकट चौथ का त्योहार भी माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन संकट हरण गणपति गणेश जी का पूजन होता है। यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला है। इतना ही नहीं, प्राणिमात्र की सभी इच्छाएं इस व्रत को करने से पूर्ण हो जाती हैं। इस दिन पुत्रवती स्त्रियां दिनभर निर्जल रहकर शाम को फलाहार करती हैं तथा सकट माता पर पूरी-पकवान चढ़ाती हैं एवं कथा सुनती हैं।

सकट चौथ व्रत की विधि (Sakat Chauth Vrat Ki Vidhi)

इस दिन तिल को भूनकर गुड़ के साथ कूटा जाता है। इससे तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है। कहीं- कहीं तिलकुट का बकरा बनाकर उसकी पूजा करके घर का कोई बालक उसकी चाकू से गरदन काटता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार साल के पहले महीने यानी जनवरी में यह त्योहार मनाया जाता है।

सकट चौथ व्रत को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। सकट चौथ को तिलकुटा चौथ, तिल चौथ,माघी चौथ, संकष्टी चतुर्थी, लंबोदर चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।

सकट चौथ
Sakat Chauth

सकट चौथ की कथा (Sakat Chauth Ki Katha)

किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बरतन पकाने के लिए ‘आवा’ लगाया तो आवा में बरतन नहीं पके। कुम्हार ने राजा से इसकी फरियाद की। राजा ने पंडित को बुलाकर कारण पूछा तो पंडित जी ने कहा कि हर बार आवा लगाते समय बच्चे की बलि देने से आवा पक जाया करेगा। राजा का आदेश निकल गया। बलि आरंभ हो गई। एक बार सकट के दिन एक बुढ़िया के एकमात्र बालक की बारी आई।

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सकट चौथ
Sakat Chauth

बुढ़िया ने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा- भगवान का नाम लेकर आवा में बैठ जाना। सकट माता तुम्हारी रक्षा करेगी। बालक भगवान का नाम लेकर आवा में बैठ गया।

बुढ़िया सकट माता के सामने बैठकर पूजा करने लगी। पहले तो आवा पकने में कई दिन लगते थे किंतु अबकी बार एक दिन में ही आवा पक गया। बुढ़िया का बेटा भी आवे में से सुरिक्षत निकल आया। उस दिन नगरवासियों ने सकट की महिमा स्वीकार की। सकट की कृपा से अन्य बालक भी जीवित हो गए।

सकट चौथ की आरती (Sakat Chauth Ki Aarti)

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥