महालक्ष्मी पूजन विधि, कथा और आरती | Maha Lakshmi Pujan Vidhi, Katha aur Aarti

Maha Lakshmi Pujan Vidhi, Katha aur Aartiमहालक्ष्मी पूजन पूजा विधि, कथा और आरती

Maha Lakshmi Pujan Vidhi, Katha aur Aarti: महालक्ष्मी के पूजन का अनुष्ठान भादों सुदी अष्टमी से आरम्भ होकर आश्विन कृष्णा अष्टमी को पूर्ण होता है। कोई-कोई स्त्री पण्डित को कच्चा सूत देती हैं। पण्डित गण्डा बनाता है। कोई अपना गण्डा आप बना लेती हैं। गण्डा के सूत के सोलह धागे होते हैं और उनमें सोलह गाठें लगाई जाती हैं।

Maha Lakshmi Pujan Vidhi, Katha aur Aarti

भादों की अष्टमी को जिस दिन लक्ष्मी-पूजन का अनुष्ठान आरम्भ होता है, स्त्रियां नदी या तालाब में स्नान करने जाती हैं। वहां सधवा स्त्रियां चालीस लोटे जल अपने सिर पर डालती हैं और उतनी ही अंजुलि जल सूर्य को अर्घ देती हैं। परन्तु, विधवा स्त्रियां केवल सोलह लोटे जल सिर पर डालती हैं, और दूब सहित अंजुलि से सोलह अंजुलि जल सूर्य को अर्ध देती हैं।

Maha Lakshmi Pujan Vidhi, Katha aur Aarti
महालक्ष्मी पूजन पूजा विधि, कथा और आरती

इस प्रकार स्नान के बाद घर आकर शुद्ध जगह में पटा रखकर उस पर गण्डा रखकर लक्ष्मीजी का आह्नान करती हैं, गण्डे का पूजन करती हैं, होम करती हैं और सोलह दिन तक नित्य सोलह बोल की कहानी कहा करती हैं।

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महालक्ष्मी पूजन की कथा (Maha Lakshmi Pujan Ki Katha)

कहानी इस प्रकार है- अमोती दमोती रानी, पोला परपाटन गांव, मगदसेन राजा, बंभन बरुआ, कहे कहानी, सुनो हो महालक्ष्मीदेवी रानी, हमसे कहते तुमसे सुनते सोलह बोल की कहानी।

इस कहानी को सोलह बार कहकर अक्षत छोड़े जाते हैं। कुंवार वदी अष्टमी को जब महालक्ष्मी का पूजन होता है, तब सोलह प्रकार का पकवान बनाया जाता है। मिट्टी का हाथी पूजा जाता है और उसी के पास वह गण्डा भी रख दिया जाता है।

अधिकांश पण्डित इस पूजन को विधिवत् करवाते हैं और लक्ष्मीजी की पौराणिक कथा कहते हैं। जहां पण्डित नहीं पहुंच सकते, वहां स्त्रियां नीचे लिखी कथा पूजन के अन्त में कहती हैं-

हाथी की कथा – एक राजा के दो रानियां थीं। एक के सिर्फ एक ही लड़का था और दूसरी के बहुत-से लड़के थे। महालक्ष्मी पूजन की तिथि आई। छोटी रानी के बहुत-से लड़कों ने एक-एक लोंदा मिट्टी का हाथी का बनाया बड़ा भारी हाथी बन गया।

 Maha Lakshmi Pujan Vidhi, Katha aur Aarti
महालक्ष्मी पूजन पूजा विधि, कथा और आरती

रानी ने उस हाथी की विधिवत् पूजा की। परन्तु दूसरी रानी जिसका एक ही लड़का था, चुपचाप सिर नीचा किये बैठी थी। लड़के के पूछने पर उसकी मां ने कहा कि तुम थोड़ी-सी मिट्टी लाओ, तो मैं एक हाथी बनाकर पूजा कर लूं।

देखो तुम्हारे भाइयों ने कितना बड़ा हाथी बनाया है। यह सुनकर लड़के ने कहा कि तुम पूजन की सामग्री इकट्ठी करो, मैं तुम्हारी पूजा के लिए सजीव हाथी ले आता हूं।

निदान वह राजा इन्द्र के यहां गया और वहां से वह अपनी माता पूजन के लिए इन्द्र का ऐरावत हाथी ले आया। माता ने बड़े प्रेम पूजन किया और कहा-

क्या करे किसी के सौ साठ ।
मेरा एक पुत्र पुजावे आस ।।

महालक्ष्मी की आरती (Maha Lakshmi Ki Aarti)

ओम जय लक्ष्मी माता
मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निशिदिन सेवत
हरि विष्णु विधाता
ओम जय लक्ष्मी माता॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी
तुम ही जग-माता
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत
नारद ऋषि गाता
ओम जय लक्ष्मी माता॥

दुर्गा रुप निरंजनी
सुख सम्पत्ति दाता
जो कोई तुमको ध्यावत
ऋद्धि-सिद्धि धन पाता
ओम जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल-निवासिनि
तुम ही शुभदाता
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी
भवनिधि की त्राता
ओम जय लक्ष्मी माता॥

जिस घर में तुम रहतीं
सब सद्गुण आता
सब सम्भव हो जाता
मन नहीं घबराता
ओम जय लक्ष्मी माता॥

तुम बिन यज्ञ न होते
वस्त्र न कोई पाता
खान-पान का वैभव
सब तुमसे आता
ओम जय लक्ष्मी माता॥

शुभ-गुण मंदिर सुंदर
क्षीरोदधि-जाता
रत्न चतुर्दश तुम बिन
कोई नहीं पाता
ओम जय लक्ष्मी माता॥

महालक्ष्मीजी की आरती
जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता
पाप उतर जाता
ओम जय लक्ष्मी माता॥