Durga Ashtami 2023: दुर्गा अष्टमी का महत्व, दुर्गा के सभी अवतारों की कथा और आरती

Durga Ashtamiदुर्गा अष्टमी

Durga Ashtami: आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी ही दुर्गा अष्टमी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन दुर्गा देवी की पूजा की जाती है। भगवती को उबले हुए चने, हलवा, पूड़ी, खीर आदि का भोग लगाया जाता है। पश्चिमी बंगाल में शक्ति को अधिक मान्यता दी जाती है। वहां बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है। इस दिन देवी की ज्योत करके कन्या-लांगुरा जिमाते हैं।

दुर्गा अष्टमी की कथा (Durga Ashtami Ki Katha)

एक समय भारतवर्ष में दुर्गम नाम का एक राक्षस हुआ था। उसके भय से पृथ्वी ही नहीं, स्वर्ग और पाताल में निवास करने वाले भी भयभीत हो गए। ऐसी विपत्ति के समय में भगवान की शक्ति ने दुर्गा या दुर्गसेनी के नाम से अवतार लिया और दुर्गम राक्षस को मारकर ब्राह्मणों एवं भक्तों की रक्षा की। दुर्गम का अंत करने के कारण ही तीनों लोकों में उनका दुर्गा नाम विख्यात हो गया।

श्री दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय में देवी के नौ अवतारों की कथा मिलती है। स्वयं देवी द्वारा उच्चारण किए गए शब्दों में-

…यदा यदा दानवोत्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्॥

अर्थ- जब-जब भी दैत्यों द्वारा उपद्रव उठेगा, तब-तब मैं अवतार लेकर शत्रुओं (दैत्यों) का संहार करूंगी। भगवती ने इस कथन की पालना भिन्न-भिन्न दुष्कर समयों पर अवतार धारण करके तथा दुष्टों का नाश करके की है।

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मुख्यतया हिंदुओं में प्राचीन शास्त्रों के अनुसार दुर्गा के नौ रूपों का वर्णन आता है उन नौ रूपों की पृथक-पृथक कथा निम्नलिखित है-

1. महाकाली (Maa Mahakali Ki Katha)

एक बार जब पूरा संसार प्रलय से ग्रस्त हो गया था। चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देता था। उस समय भगवान विष्णु की नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ। उस कमल से ब्रह्माजी निकले। इसके अतिरिक्त भगवान नारायण के कानों में से कुछ मैल भी निकला, उस मैल से कैटभ और मधु नाम के दो दैत्य बन गए। जब उन दैत्यों ने चारों ओर देखा तो ब्रह्मा जी के अलावा उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दिया।

ब्रह्मा जी को देखकर वे दैत्य उन्हें मारने दौड़े। तब भयभीत हुए ब्रह्मा जी ने विष्णु भगवान की स्तुति की। स्तुति से विष्णु भगवान की आंखों में जो महामाया ब्रह्मा की योगनिद्रा के रूप में निवास करती थी वह लोप हो गई और विष्णु भगवान की नींद खुल गई। उनके जागते ही वे दोनों दय भगवान विष्णु से लड़ने लगे।

Maa Mahakali
महाकाली

इस प्रकार पांच हजार वर्ष तक युद्ध चलता रहा। अंत में भगवान की रक्षा के लिए महामाया ने असुरों की बुद्धि को बदल दिया। तब वे असुर विष्णु भगवान बोले- हम आपके युद्ध से प्रसन्न हैं, जो चाहो व मांग लो। भगवान ने मौका पाया और कहने लगे, यदि हमें वर देना है तो यह वर दो कि दैत्यों का नाश हो। दैत्यों ने कहा, ऐसा ही होगा। ऐसा कहते ही महाबली दैत्यों का नाश हो गया। जिसने असुरों की बुद्धि को बदला था वह ‘महाकाली’ थीं।

महाकाली की आरती (Maa Mahakali Ki Aarti)

जय काली माता, मां जय महा काली मां।
रतबीजा वध कारिणी माता।
सुरनर मुनि ध्याता, मां जय महा काली मां॥

दक्ष यज्ञ विदवंस करनी मां शुभ निशूंभ हरलि।
मधु और कैटभ नाशिनी माता।
महेशासुर मारदिनी, ओ माता जय महा काली मां॥

हे हीमा गिरिकी नंदिनी प्रकृति रचा इत्ठि।
काल विनासिनी काली माता।
सुरंजना सूख दात्री हे माता॥

अननधम वस्तराँ दायनी माता आदि शक्ति अंबे।
कनकाना कना निवासिनी माता।
भगवती जगदंबे, ओ माता जय महा काली मां॥

दक्षिणा काली आध्या काली, काली नामा रूपा।
तीनो लोक विचारिती माता धर्मा मोक्ष रूपा॥

॥ जय महा काली मां ॥

2. महालक्ष्मी (Mahalaxmi Ki Katha)

एक समय महिषासुर नाम का एक दैत्य हुआ। उसने समस्त राजाओं को हराकर पृथ्वी और पाताल पर अपना अधिकार जमा लिया। जब वह देवताओं से युद्ध करने लगा तो देवता भी उससे युद्ध में हारकर भागने लगे। भागते- भागते वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उस दैत्य से बचने के लिए स्तुति करने लगे।

Mahalaxmi Ki Aarti
महालक्ष्मी

देवताओं की स्तुति करने से भगवान विष्णु और शंकर जी जब प्रसन्न हुए, तब उनके शरीर से एक तेज निकला, जिसने महालक्ष्मी का रूप धारण कर लिया। इन्हीं महालक्ष्मी ने महिषासुर दैत्य को युद्ध में मारकर देवताओं का कष्ट दूर किया। विष्णु पत्नी होने के कारण लक्ष्मी जी को विष्णु प्रिया कहा जाता है। लक्ष्मी के साथ विष्णु की उपासना करने से घर में लक्ष्मी सदैव बनी रहती है।

महालक्ष्मी की आरती (Mahalaxmi Ki Aarti)

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निस दिन सेवत हर-विष्णु-धाता
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता
ॐ जय लक्ष्मी माता॥

3. चामुंडा (Maa Chamunda Ki Katha)

एक समय शुम्भ निशुम्भ नाम के दो दैत्य बहुत बलशाली हुए थे। उनसे युद्ध में मनुष्य तो क्या देवता तक हार गए। जब देवताओं ने देखा कि अब वे युद्ध में नहीं जीत सकते, तब वह स्वर्ग को छोड़कर भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे। उस समय भगवान विष्णु के शरीर में से एक ज्योति प्रकट हुई जो कि महासरस्वती थी। महासरस्वती अत्यंत रूपवान थीं।

उनका रूप देखकर वे दैत्य मुग्ध हो गए और अपना सुग्रीव नामक का दूत उसी देवी ने वापस कर दिया। इसके बाद उन दोनों ने देवी को बलपूर्वक लाने के लिए अपने सेनापति धूम्राक्ष को सेना सहित भेजा, जो देवी द्वारा सेना सहित मार दिया गया।

Maa Chamunda Ki Aarti
चामुंडा

इसके बाद रक्तबीज लड़ने आया, जिसके रक्त की बूंद जमीन पर गिरने से एक वीर पैदा होता था। वह बहुत बलवान था । उसे भी देवी ने मार गिराया। अंत में शुम्भ निशुम्भ स्वयं दोनों लड़ने आए और देवी के हाथों मारे गए।

चामुंडा की आरती (Maa Chamunda Ki Aarti)

जय चामुंडा माता मैया जय चामुंडा माता
सरण आए जो तेरे सब कुछ पा जाता
मैया जय चामुंडा माता

चाँद मूंद दो राक्षस हुए है बलसाली
उनको तूने मारा क्रोध दृष्टि डाली
मैया जय चामुंडा माता

चौसठ योगिनी आकर तांडव नृत्य करे
बावन भेरो झूमे विपदा आनन हरे
मैया जय चामुंडा माता

शक्ति धाम कहती पीछे शिव मंडर
ब्रह्मा, विष्णु, नारद , मंत्र जपे अन्दर
मैया जय चामुंडा माता

सिहराज यहा रहते घंटा दवणी बजे
निर्मल धारा जल की वेडर नदी साजे
मैया जय चामुंडा माता

क्रोध रूप मई खप्पर खाली नही रहता
शांत रूप जो धियावे आनंद भर देता
मैया जय चामुंडा माता

हनुमत बाला योगी धड़े बलशाली
कारज पुरद करती दुर्गा महाकालिल
मैया जय चामुंडा माता

रिद्धि सिद्धि देकर जान के पाप हारे
सरणागत जो होता आनंद राज करे
मैया जय चामुंडा माता

शुभ गुड मंदिर वाली ‘ओम’ किरपा कीजे
दुख जीवन के संकट आकर हर लीजे
मैया जय चामुंडा माता

4. योगमाया (Maa Yogmaya Ki Katha)

जब कंस ने वसुदेव-देवकी के 6 पुत्रों का वध कर दिया था और सातवें में शेषनाग बलराम जी आये, जो रोहिणी के गर्भ से प्रवेश होकर प्रकट हुए, तब आठवां जन्म कृष्ण जी का हुआ। साथ ही साथ गोकुल में यशोदा जी के गर्भ से योगमाया का जन्म हुआ जो वसुदेव जी द्वारा कृष्ण के बदले मथुरा में लाई गई थी।

Maa Yogmaya Ki Aarti
योगमाया

जब कंस ने कन्या स्वरूपा उस योगमाया को मारने के लिए पटकना चाहा तो वह हाथ से छूट गई और आकाश में जाकर देवी का रूप धारण कर लिया। आगे चलकर इसी योगमाया ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर आदि शक्तिशाली असुरों का संहार करवाया।

योगमाया की आरती (Maa Yogmaya Ki Aarti)

ॐ जय माँ योगमाया ॐ जय श्री योगमाया
भक्त जनों को अपने… दे शीतल छाया
ॐ जय श्री माँ योगमाया

तुम देवी कुलरक्षक ग्वालों की दाती
कल्याणी कष्टों को… क्षण में दूर करती
ॐ जय श्री माँ योगमाया

तुम हो शक्ति धरा की महिमा हो नग की
पूर्ण हो करती इच्छा… तुम सबके मन की
ॐ जय श्री माँ योगमाया

हम पर कृपा सदा हो मैय्या ये वर दो
दर्शन दो हे माता… हमें धन्य कर दो
ॐ जय श्री माँ योगमाया

भक्त जनों को अपने… दे शीतल छाया
ॐ जय श्री माँ योगमाया

5. रक्तदंतिका (Raktdantika Ki Katha)

एक बार वैप्रचित्ति नाम के असुर ने बहुत से कुकर्म करके पृथ्वी को व्याकुल कर दिया। उसने मनुष्य ही नहीं बल्कि देवताओं तक को बहुत दुःख दिया।

Raktdantika
रक्तदंतिका

देवताओं और पृथ्वी की प्रार्थना पर उस समय देवी ने रक्तदन्तिका नाम से अवतार लिया और वैप्रचित्ति आदि असुरों का मान मर्दन कर डाला। भयंकर दैत्यों को भक्षण करते समय देवी के दांत अनार के फूल के समान लाल हो गए। इसी कारण से इनका नाम रक्तदंतिका विख्यात हुआ।

6. शाकुम्भरी (Shakambhari Ki Katha)

एक समय पृथ्वी पर लगातार सौ वर्ष तक पानी की वर्षा ही नहीं हुई। इस कारण चारों ओर हाहाकार मच गया। सभी जीव भूख और प्यास से व्याकुल हो मरने लगे। उस समय मुनियों ने मिलकर देवी भगवती की उपासना की।

Shakambhari Ki Aarti
शाकुम्भरी

तब जगदम्बा ने शाकुम्भरी नाम से स्त्री रूप में अवतार लिया और उनकी कृपा जल की वर्षा हुई, जिससे पृथ्वी के समस्त जीवों को जीवनदान प्राप्त हुआ। वृष्टि न होने के पहले तक देवी ने प्राणों की रक्षा में समर्थ शाकों द्वारा संपूर्ण जगत का भरण-पोषण किया, जिससे ‘शाकम्भरी’ नाम प्रसिद्ध हुआ।

शाकुम्भरी की आरती (Shakambhari Ki Aarti)

जय-जय शाकम्भरी माता ब्रह्मा विष्णु शिव दाता
हम सब उतारे तेरी आरती री मैया हम सब उतारे तेरी आरती

संकट मोचनी जय शाकम्भरी तेरा नाम सुना है
री मैया राजा ऋषियों पर जाता मेधा ऋषि भजे सुमाता
हम सब उतारे तेरी आरती

मांग सिंदूर विराजत मैया टीका सूब सजे है
सुंदर रूप भवन में लागे घंटा खूब बजे है
री मैया जहां भूमंडल जाता जय जय शाकम्भरी माता
हम सब उतारे तेरी आरती

क्रोधित होकर चली मात जब शुंभ- निशुंभ को मारा
महिषासुर की बांह पकड़ कर धरती पर दे मारा
री मैया मारकंडे विजय बताता पुष्पा ब्रह्मा बरसाता
हम सब उतारे तेरी आरती

चौसठ योगिनी मंगल गाने भैरव नाच दिखावे।
भीमा भ्रामरी और शताक्षी तांडव नाच सिखावें
री मैया रत्नों का हार मंगाता दुर्गे तेरी भेंट चढ़ाता
हम सब उतारे तेरी आरती

कोई भक्त कहीं ब्रह्माणी कोई कहे रुद्राणी
तीन लोक से सुना री मैया कहते कमला रानी
री मैया दुर्गे में आज मानता तेरा ही पुत्र कहाता हम सब उतारे तेरी आरती

सुंदर चोले भक्त पहनावे गले मे सोरण माला
शाकंभरी कोई दुर्गे कहता कोई कहता ज्वाला
री मैया मां से बच्चे का नाता ना ही कपूत निभाता
हम सब उतारे तेरी आरती

पांच कोस की खोल तुम्हारी शिवालिक की घाटी
बसी सहारनपुर मे मैय्या धन्य कर दी माटी
री मैय्या जंगल मे मंगल करती सबके भंडारे भरती
हम सब उतारे तेरी आरती

शाकंभरी मैया की आरती जो भी प्रेम से गावें
सुख संतति मिलती उसको नाना फल भी पावे
री मैया जो जो तेरी सेवा करता लक्ष्मी से पूरा भरता हम सब उतारे तेरी आरती

7. श्री दुर्गा (Maa Durga Ki Katha)

प्राचीन काल की बात है, दुर्गम नाम का एक दैत्य था। उसकी आकृति अत्यंत भयंकर थी। हिरण्याक्ष के वंश में उसका जन्म हुआ था। वह बहुत ही क्रूर और अत्याचारी था। उस राक्षस के अत्याचारों से पृथ्वीवासी, पाताल निवासी एवं देवताओं में हाहाकार मच गया।

Maa Durga Ki Aarti
मां दुर्गा

ऐसी विपत्ति के समय में भगवान की शक्ति दुर्गा ने अवतार लिया। दुर्गा ने दुर्गम राक्षस का संहार करके पृथ्वी के रहने वालों तथा देवताओं को इस विपत्ति से छुटकारा दिलाया। दुर्गम राक्षस को मारने के कारण ही तीनों लोकों में इनका नाम दुर्गा देवी प्रसिद्ध हो गया। देवी दुर्गा का स्मरण करने वाला मनुष्य कभी किसी से पराजित नहीं होता। देवी दुर्गा सदा उसकी रक्षा करती हैं।

मां दुर्गा की आरती (Maa Durga Ki Aarti)

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
जय अम्बे गौरी

मांग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको॥
जय अम्बे गौरी

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥
जय अम्बे गौरी

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥
जय अम्बे गौरी

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥
जय अम्बे गौरी

शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥
जय अम्बे गौरी

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
जय अम्बे गौरी

ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥
जय अम्बे गौरी

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥
जय अम्बे गौरी

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥
जय अम्बे गौरी

भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥
जय अम्बे गौरी

कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥
जय अम्बे गौरी

श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥
जय अम्बे गौरी

8. भ्रामरी (Bhramari Ki Katha)

एक बार महा- अत्याचारी अरुण नाम का एक असुर पैदा हुआ। उसने स्वर्ग में जाकर उपद्रव करना शुरू कर दिया। देवताओं की पक्षियों का सतीत्व नष्ट करने की कुचेष्टा करने लगा। अपने सतीत्व की रक्षा के लिए देव-पत्रियों ने भौरों का रूप धारण कर लिया और दुर्गा देवी की प्रार्थना करने लगीं। देव पत्नियों को दुःखी जानकर माता दुर्गा ने भ्रामरी का रूप धारण करके उस असुर को उसकी सेना सहित मार डाला और देव पत्नियों के सतीत्व की रक्षा की।

9. चण्डिका (Chandika Ki Katha)

एक बार पृथ्वी पर चंड-मुण्ड नाम के दो राक्षस पैदा हुए। वे दोनों इतने बलवान थे कि संसार में अपना राज्य फैला लिया और स्वर्ग के देवताओं को हराकर वहां भी अपना अधिकार जमा लिया। इस प्रकार देवता बहुत दुःखी हुए और देवी की स्तुति करने लगे।

Chandika
चंडिका

तब देवी चंडिका के रूप में अवतरित हुई और चण्ड मुण्ड नामक राक्षसों को मारकर संसार का दुःख दूर किया। देवताओं का गया स्वर्ग पुनः उन्हें दिया । इस प्रकार चारों ओर सुख का राज्य छा गया। चण्ड तथा मुण्ड का वध करने के कारण इस अवतार में देवी को चामुण्डा और चंडी कहा गया।